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| प्रज्ञापना सूत्र : एक परिचय
प्रकार के हैं- १. स्वस्थान-जहां जीव जन्म से मृत्यु तक रहता है २.
प्रासंगिक वासस्थान (उपपात, समुद्घात) 3. तृतीय अल्पबहुत्व पद में दिशा, गति, इन्द्रिय, काय, योग, वेद, कषाय,
लेश्या, सम्यक्त्व, ज्ञान, दर्शन, संयत, उपयोग, आहार, भाषक, परीत, पर्याप्त, सूक्ष्म, संज्ञी, भव, अस्तिकाय, चरम, जीव, क्षेत्र , बन्ध, पुद्गल
और महादण्डक इन २७ द्वारों की अपेक्षा से जीवों के अल्पबहुत्व का विचार किया गया है। 4. चतुर्थ स्थितिपद में नैरयिक, भवनवासी, पृथ्वीकाय, अप्काय,
तेजस्काय, वायुकाय, वनस्पतिकाय, विकलेन्द्रिय, पंचेन्द्रिय, मनुष्य,
व्यन्तर, ज्योतिषी और वैमानिक जीवों की स्थिति का वर्णन है। 5. पंचम विशेषपद या पर्यायपद में चौबीस दण्डकों के नैरयिक से
वैमानिक तक की पर्यायों की विचारणा की गई है। इसके बाद अजीव पर्याय के भेद-प्रभेद तथा अरूपी अजीव व रूपी अजीव के
भेद-प्रभेदों की अपेक्षा से पर्यायों की संख्या की विचारणा की गई है। 6. छठे व्युत्क्रान्ति पद में बारह मुहूर्त और चौबीस मुहूर्त का उपपात और
मरण संबंधी विरहकाल क्या है? कहां जीव सान्तर उत्पन्न होता है, कहां निरन्तर? एक समय में कितने जीव उत्पन्न होते हैं और मरते हैं? कहां से
आकर उत्पन्न होते हैं? मरकर कहां जाते हैं? परभव की आयु कब बंधती हैं? आयु बन्ध संबंधी आठ आकर्ष कौनसे हैं? इन आठ द्वारों से
जीव प्ररूपणा की गई है। 7. सातवें उच्छवास पद में नैरयिक आदि के उच्छ्वास ग्रहण करने और
छोड़ने के काल का वर्णन है। 8. आठवें संज्ञा पद में जीव की आहार, भय, मैथुन, परिग्रह, क्रोध, मान,
माया, लोभ, लोक और ओघ इन दस संज्ञाओं का २४ दण्डकों की __ अपेक्षा निरूपण किया गया है। 9. नौवें योनि पद में जीव की शीत, उष्ण, शीतोष्ण, सचित्त, अचित्त, मिश्र,
संवृत, विवृत, संवृतविवृत, कूर्मोन्नत, शंखावर्त, वंशीपत्र इन योनियों के
आश्रय से समग्र जीवों का विचार किया गया है। 10. दसवें चरम-अचरम पद में चरम है, अचरम है, चरम है (बहुवचन)
अचरम है, चरमान्त प्रदेश है, अचरमान्त प्रदेश है, इन ६ विकल्पों को लेकर २४ दण्डकों के जीवों का गति आदि की दृष्टि से तथा विभिन्न
द्रव्यों का लोक-अलोक आदि की अपेक्षा विचार किया गया है। 11. ग्यारहवें भाषा पद में भाषा किस प्रकार उत्पन्न होती है? कहां पर रहती
है? उसकी आकृति किस प्रकार की है? उसका स्वरूप, बोलने वाले आदि के प्रश्नों पर विचार किया है। साथ ही सत्य भाषा के दस, मृषाभाषा के दस, सत्यामृषा के दस तथा असत्यामृषा के १६ प्रकार
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