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जिनवाणी- जैनागम-साहित्य विशेषाङ्क राजव्यवहार को देखा और अनुभव किया । चित्त सारथी के श्रावस्ती नगरी में पहुँचने पर वहाँ चार ज्ञान के धारक, चौदह पूर्वो के ज्ञाता पार्वापत्य केशीकुमार नामक श्रमण पाँच सौ अणगारों के साथ ग्रामानुग्राम विचरण करते हुए श्रावस्ती नगरी के बाहर कोष्ठक नामक चैत्य में स्थान की याचना कर अवग्रह ग्रहण कर संयम व तप से आत्मा को भावित करते हुए विचरने लगे । परिषद् धर्म कथा श्रवण करने को निकली, कर्णाकर्णी चित्तसारथी को भी ज्ञान हुआ कि कोष्ठक चैत्य में परम प्रतापी केशीकुमार नामक श्रमण का पदार्पण हुआ है। तब चित्त सारथी अत्यन्त हर्षित हुआ एवं केशीकुमार श्रमण के दर्शनार्थ निकला। वहाँ पहुँचकर केशीकुमार स्वामी को वंदन नमस्कार कर धर्मोपदेश सुनने की इच्छा से विनयपूर्वक उनकी पर्युपासना की ।
तत्पश्चात् केशीकुमार श्रमण ने चित्त सारथी सहित उपस्थित परिषद् को चातुर्याम धर्म का उपदेश दिया । चित्त सारथी केशी कुमार श्रमण के धर्मोपदेश को सुनकर अत्यन्त हर्षित हुआ और उसने केशी कुमार श्रमण से श्रावक धर्म स्वीकार किया।
कुछ दिनों तक श्रावस्ती नगरी में रहकर केशी स्वामी के चरणों में चित्त सारथी ने सेयविया नगरी में पधारने हेतु विनती की, अति अनुनयभरी विनती को केशी श्रमण ने स्वीकार किया । चित्त सारथी हर्षित होता हुआ सेयविया नगरी पहुँचा तथा श्रद्धापूर्वक श्रावक धर्म का पालन करने लगा।
किसी समय केशीकुमार श्रमण श्रावस्ती नगरी से विहार कर सेयविया नगरी में पधारे। केशी कुमार श्रमण के सेयविया नगरी में पधारने पर परिषद् वंदन करने निकली, चित्त सारथी भी वंदना करने पहुँचा । वहाँ पहुँचकर केशी कुमार श्रमण को वंदन नमस्कार कर पर्युपासना करने लगा। धर्मोपदेश सुनने के पश्चात् चित्त सारथी ने केशी श्रमण से निवेदन किया
"हे भदन्त ! हमारा प्रदेशी राजा अधार्मिक एवं पापाचार में लिप्त है, वह अपने जनपद का पालन व रक्षण नहीं करता है, अतः आप राजा प्रदेशी को धर्म उपदेश देकर उसका कल्याण करें।"
केशी कुमार श्रमण ने कहा - " राजा प्रदेशी जब श्रमण माहण के सम्मुख ही उपस्थित नहीं होता है तो हे चित्त ! मैं राजा प्रदेशी को कैसे उपदेश दे सकूंगा।"
केशी स्वामी के कथन को सुनने बाद चित्त सारथी ने दूसरे दिन युक्तिपूर्वक राजा प्रदेशी को केशीकुमार श्रमण की सेवा में उपस्थित किया।
केश कुमार श्रमण को दूर से देखकर राजा प्रदेशी ने चित्त से कहा"अज्ञानी ही अज्ञानी की उपासना करते हैं, परन्तु यह कौन पुरुष है जो जड़, मुंड, मूढ, अपंडित और अज्ञानी होते हुए भी श्री ह्रीं से सम्पन्न है, शारीरिक कान्ति से सुशोभित है?" तब चित्त सारथी ने राजा प्रदेशी से कहा
हे स्वामिन्! ये पावपत्य केशी नामक कुमार श्रमण है जो चार ज्ञान
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