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राजप्रश्नीय सूत्र
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वहाँ आया और भगवान की तीन बार आदक्षिणा- प्रदक्षिणा कर वंदन नमस्कार किया। तब भगवान महावीर ने कहा- हे सूर्याभ देव ! यह जीत परम्परागत व्यवहार है। यह कृत्य है। भगवान महावीर ने उपस्थित परिषद् को धर्म देशना दी, परिषद् पुनः लौट गई।
तब सूर्याभ देव ने भगवान महावीर के सम्मुख जिज्ञासा प्रस्तुत की और पूछा कि --
भगवन्! मैं सूर्याभदेव भव्य हूँ या अभव्य, सम्यग्दृष्टि हूँ या मिथ्यादृष्टि, परित्त संसारी हूँ या अपरित संसारी, आराधक हूँ अथवा विराधक, चरम शरीरी हूँ या अचरमशरीरी ? तब भगवान महावीर ने कहाहे सूर्याभ! तुम भव्य, सम्यग्दृष्टि, परित्तसंसारी, आराधक एवं चरमशरीरी हो । तदनन्तर उस सूर्याभ देव ने भगवान महावीर के समक्ष अपनी दिव्य शक्ति से अनेक प्रकार की नाट्य विधियों का अति सुन्दर प्रदर्शन किया एवं साथ ही भगवान महावीर के जीवन प्रसंगों का भी सुन्दर अभिनय किया।
सूर्याभ देव द्वारा प्रदर्शित नाट्य विधियों को देखकर गौतम स्वामी के मन में सूर्याभ देव के विषय में जिज्ञासा उत्पन्न हुई, उन्होंने भगवान महावीर से निवेदन किया
हे भदन्त ! इस सूर्याभ देव ने दिव्य देव ऋद्धि, दिव्य देवद्युति और दिव्य देव प्रभाव कैसे प्राप्त किया? यह सूर्याभदेव पूर्वभव में कौन था ? तब भगवान महावीर ने गौतम की जिज्ञासा को शान्त करते हुए उसे संबोधित कर कहा
हे गौतम! अवसर्पिणी काल के चतुर्थ आरे में केशी स्वामी के विचरने के समय इस जम्बूद्वीप के केकय-अर्द्ध नामक जनपद में सेयविया (श्वेताम्बिका) नाम की नगरी थी, उस नगरी का राजा प्रदेशी था । राजा प्रदेशी अधार्मिक राजा था, वह सदैव मारो, छेदन करो, भेदन करो, इस प्रकार की आज्ञा का प्रवर्तक था। उसके हाथ सदैव रक्त से सने रहते थे और वह साक्षात् पाप का अवतार था । उस राजा प्रदेशी की सूर्यकान्ता नाम की रानी तथा उस सूर्यकान्ता रानी का आत्मज सूर्यकान्त नामक राजकुमार था। वह सूर्यकान्त कुमार युवराज था, वह प्रदेशी के शासन की देखभाल स्वयं करता
था।
उस प्रदेशी राजा का उम्र में बड़ा भाई एवं मित्र जैसा चित्त नामक सारथी था । वह चित्त सारथी कुशल राजनीतिज्ञ, राज्य प्रबंधन में कुशल तथा बुद्धिमान था । एक समय राजा प्रदेशी ने चित्त सारथी को कुणाल जनपद की राजधानी श्रावस्ती नगरी भेजा, क्योंकि श्रावस्ती नगरी का राजा जितशत्रु राजा प्रदेशी के अधीन था।
चित्त सारथी राजा की आज्ञा प्राप्त कर विपुल उपहारों सहित श्रावस्ती नगरी पहुँचा। वह जितशत्रु राजा से भेंट कर वहाँ की शासन व्यवस्था एवं
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