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| अन्तकृतदशासूत्र का समीक्षात्मक अध्ययन
2097 अंगीकार कर उग्र तपश्चर्या करते हैं। जिनके नाम से एक दिन बड़े-बड़े वीरों के पांव थर्राते थे और हृदय कांपते थे, जिसने तेरह दिन में ११४१ व्यक्तियों की हत्याएँ की थीं, वही अर्जुनमाली श्रमणदीक्षा ग्रहण कर लोगों के कटुवचन तथा तिरस्कार को निर्जरा का हेतु समझकर अपनी इन्द्रियों का दमन करता है। वह निमित्त को दोषी नहीं मानते हुए, अपने कर्मों का दोष मानते हुए, समत्व भावना का चिन्तन करते हुए, भयंकर उपसर्गों को शान्त भाव से सहन करता हुआ उग्र साधना के द्वारा छह माह में ही मुक्ति प्राप्त कर लेता है।
इसी वर्ग के पन्द्रहवें अध्ययन में बालमुनि अतिमुक्तक कुमार का मार्मिक वर्णन प्राप्त होता है जो साधना की दृष्टि से सभी मुनियों के लिए प्रेरणास्रोत है। इस प्रसंग से यह सिद्ध होता है कि साधना की दृष्टि से वय की प्रधानता नहीं है जो साधक वय की दृष्टि से भले ही छोटा हो, परन्तु यदि उसमें साधना की योग्यता है तो वह दीक्षित हो सकता है। इस अध्ययन में अतिमुक्तक और गौतम गणधर का समागम और भगवान महावीर से चर्चाएँ मुख्य हैं। अतिमुक्तक कुमार का उनके माता-पिता के साथ संसार की क्षणभंगुरता का प्रसंग मार्मिक है माता-पिता ने अतिमुक्तक कुमार को इस प्रकार कहा- 'हे पुत्र! तुम अभी बालक हो। असंबुद्ध हो। तुम अभी धर्म तत्त्व को क्या जानते हो? तब अतिमुक्तक कुमार ने कहा- हे माता-पिता! मैं जिसको जानता हूँ, उसको नहीं जानता हूँ और जिसको नहीं जानता हूँ उसको जानता हूँ। तब उन्होंने कहा- हे माता-पिता! मैं जानता हूँ कि जिसने जन्म लिया है उसकी मृत्यु निश्चित है, किन्तु मैं यह नहीं जानता कि मृत्यु कब, किस समय अथवा कहाँ अर्थात् किस स्थान पर कैसी अवस्था में आयेगी। जीव किन कर्मों से नरक आदि में जन्म लेते हैं यह मैं नही जानता, किन्तु यह जानता हूँ कि कर्मबन्ध के कारणों से नारकी आदि योनियों में जन्म लेते हैं। अत: मैं संयम अंगीकार करना चाहता हूँ। भगवती सूत्र में उल्लेख है कि शौच के लिए जाते समय रास्ते में पानी को देखकर अतिमुक्तक कुमार का बालकपन उभर आया और एक पात्र उस पानी में छोड़कर वे कहने लगे"तिर मेरी नैया तिर"। परन्तु अन्य स्थविरों को उनका यह कृत्य श्रमणमर्यादा के विपरीत लगा। अत: उन्हें उपालम्भ दिया। अतिमुक्तक को इस कृत्य पर अत्यन्त पश्चात्ताप हुआ। भगवान महावीर ने स्थविरों के मन की भावना को जानकर उन्हें कहा कि अतिमुक्तक इसी भव में मोक्ष प्राप्त करेंगे। इनकी निन्दा और गर्हणा मत करो। यहाँ मुक्ति के लिए पश्चात्ताप के आदर्श मार्ग को अतिमुक्त मुनि के प्रसंग से दर्शाया है।
सप्तम वर्ग के १३ अध्ययन हैं। इन तेरह अध्ययनों में राजगृह नगर के सम्राट् राजा श्रेणिक की तेरह रानियों के बीस वर्ष तक संयम पालन कर अन्त में सिद्धत्व प्राप्ति का उल्लेख है। ये तेरह रानियाँ हैं- नंदा, नंदवती,
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