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६. प्रद्युम्न कुमार
७. शाम्ब कुमार
८. अनिरुद्ध कुमार सत्यनेमि
जिनवाणी- जैनागम-साहित्य विशेषाङ्क
रानी रूक्मिणी
रानी जाम्बवती
रानी दैदर्भी
रानी शिवा
श्रीकृष्ण वासुदेव
श्रीकृष्ण वासुदेव
प्रद्युम्न कुमार म. समुद्र विजय
९.
कुमार
१०. दृढनेमि कुमार
म. समुद्र विजय
रानी शिवा
इस वर्ग में वर्णन आया है कि इन सभी राजकुमारों का जीवन गौतम कुमार की तरह था । इन सभी ने पचास-पचास कन्याओं के साथ विवाह किया था। बारह वर्ष तक अंगों का अध्ययन कर सोलह वर्ष तक संयम का पालन किया और अन्त में शत्रुंजय पर्वत पर मुक्त अवस्था प्राप्त की ।
पाँचवें वर्ग के दस अध्ययनों में श्रीकृष्ण वासुदेव की आठ रानियों तथा दो पुत्रवधुओं के वैराग्यमय जीवन का वर्णन है । श्रीकृष्ण की रानियों में पद्मावती, गौरी, गान्धारी, लक्ष्मणा, सुसीमा, जाम्बवती, सत्यभामा तथा रूक्मिणी देवी और पुत्रवधुओं में मूलश्री एवं मूलदत्ता देवी है। राज्य वैभव को त्यागकर वैराग्य मार्ग को अपनाने में राजरानियाँ भी किसी से कम नहीं हैं । यह अपूर्व उदाहरण है। इसी वर्ग में भगवान अरिष्टनेमि ने श्रीकृष्ण को कहा था कि वे आने वाली चौबीसी में जम्बूद्वीप के अन्तर्गत भारतवर्ष के पुण्ड्रदेश के शतद्वार नामक नगर में अमम नामक बारहवें तीर्थंकर बनेंगे। इस वर्ग का एक और प्रसंग महत्त्वपूर्ण है जिसमें भगवान अरिष्टनेमि द्वारा द्वारिका के विनाश का कारण बताया गया - सुरापान के कारण यदुवंशी युवक द्वैपायन ऋषि का अपमान करेंगे और द्वैपायन ऋषि अग्निकुमार देव बनकर द्वारिका नगरी का विनाश करेंगे।
छठे वर्ग में सोलह अध्ययन हैं। प्रथम और द्वितीय अध्ययन में मंकाई और किंकम गाथापति, तृतीय अध्ययन में अर्जुनमाली, चतुर्थ अध्ययन से चौदहवें अध्ययन में काश्यप, क्षेमक, धृतिधर, कैलाश, हरिचन्दन, वारदत्तक, सुदर्शन, पूर्णभद्र, सुमनभद्र, सुप्रतिष्ठित और मेघकुमार मुनि, पन्द्रहवें अध्ययन में अतिमुक्त कुमार और सोलहवें अध्ययन में अलक्ष नरेश का वर्णन आया है। मंकाई तथा किंकम ने सोलह वर्ष तक गुणरत्न संवत्सर तप की आराधना कर विपुलगिरि पर्वत पर सिद्धावस्था प्राप्त की । इसके तृतीय अध्ययन में अर्जुनमाली और उसकी पत्नी बन्धुमती का मार्मिक वर्णन प्राप्त होता है जो मुद्गरपाणि नामक यक्ष की उपासना करते थे। ललित गोष्ठी के छह सदस्यों द्वारा बन्धुमती के चरित्र हरण करने पर अर्जुनमाली को क्रोध आता है और मुद्गरपाणि यक्ष के सहयोग से उन छहों सदस्यों को मार देता है। भगवान महावीर के राजगृह नगर में आगमन पर सुदर्शन नामक श्रेष्ठी उनके दर्शनार्थ जाते हैं। सुदर्शन पर भी वह क्रोधित होता है, परन्तु सुदर्शन अपने जीवन को समता साधना में लगाकर अर्जुनमाली का क्रोध शांत कर देता है और वे दोनों भगवान के पास पहुँच कर श्रमणदीक्षा
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