SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 213
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 198 1 प्रेरणा मिलती है। शिक्षाएँ इस सूत्र से हमें निम्न शिक्षाएँ मिलती हैं— ०१. 'संयमः खलु जीवनम्' संयम ही जीवन है । ०२. धर्म कार्य में तनिक भी प्रमाद न करें । वय, कुल, जाति आदि संयम ग्रहण करने में बाधक नहीं बनते। ०३. जिनवाणी- जैनागम-साहित्य विशेषाङक सुदर्शन श्रावक की तरह हमें भी देव, गुरु एवं धर्म पर अपार श्रद्धा होनी चाहिए। ०४. मारणान्तिक कष्ट व परीषह आने पर भी गजसुकुमार की तरह समभाव में रहना चाहिए। ०५. अर्जुनमाली अनगार की तरह समभाव से संयम के परीषह एवं कष्टों को सहन कर कर्मों की निर्जरा करनी चाहिए। ०६. कृष्णवासुदेव की तरह धर्म दलाली करनी चाहिए। ०७. काली, सुकाली आदि आर्याओं की तरह कठोर तप साधना करनी चाहिए। इस प्रकार अन्तकृत्दशा सूत्र में अष्ट कर्म - शत्रुओं से संघर्ष करने की अद्भुत प्रेरणा भरी हुई है। इस सूत्र के प्रवक्ता भगवान महावीर हैं। बाद में सुधर्मा स्वामी ने अपने शिष्य जम्बू स्वामी को इस अंग सूत्र का अर्थ एवं रहस्य बताया। पर्वाधिराज पर्युषण के मंगलमय दिनों में हम सब इस आगम की वाणी का स्वाध्याय कर अपने कषायों का उपशमन करें, मन को सरल एवं क्षमाशील बनाएं तथा तप-त्याग की भावना में वृद्धि करें, यही इस सूत्र का प्रेरणादायी सार है। -89, Audiappa Naicken Street, First Floor, Sowcarpet, Chennai-79 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003218
Book TitleJinvani Special issue on Jain Agam April 2002
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year2002
Total Pages544
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Canon, & Agam
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy