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अन्तकृत्दशासूत्र
असारता को जानते हुए दीक्षित हुई और कठोर धर्मसाधना करके मोक्षगामी हो गई।
षष्ठवर्ग - इस वर्ग के १६ अध्ययन हैं। इस वर्ग से भगवान महावीर युग के साधकों का वर्णन प्रारम्भ होता है। प्रथम, द्वितीय, ४ से १४ अध्ययनों में कुल १३ गाथापतियों का वर्णन है। तीसरे अध्ययन में अर्जुनमाली अनगार का विस्तार से वर्णन आया है। सुदर्शन श्रावक की भगवान महावीर के दर्शनों की उत्कट भावना एवं अर्जुनमाली अनगार द्वारा मात्र ६ माह की अल्पावधि में कठोर तप साधना, समता एवं क्षमा के द्वारा भयंकर पापों को क्षय करने का वर्णन भी आया है । १५वाँ अध्ययन बालक अतिमुक्त कुमार का है, जो यह सिद्ध करता है कि लघु वय में भी संयम अंगीकार किया जा सकता है। १६वाँ अध्ययन राजा अलक्ष का है जिन्होंने दीक्षा अंगीकार कर ११ अंगों का अध्ययन किया, अनेक वर्षों तक चारित्र पर्याय का पालन कर विपुलगिरि पर सिद्ध हुए ।
सातवाँ वर्ग - इसके १३ अध्ययन हैं। इनमें नन्दा, नन्दवती, नन्दोत्तरा आदि श्रेणिक राजा की १३ रानियों का वर्णन है। ये सभी भगवान महावीर की धर्मसभा में उपस्थित हुई। प्रभु के उपदेशों से प्रभावित होकर प्रव्रज्या ग्रहण की तथा कठोर धर्मसाधना कर सिद्ध गति को प्राप्त हुई ।
आठवां वर्ग - इस वर्ग के १० अध्ययनों में जिन आत्माओं का वर्णन है वे सभी राजा श्रेणिक की रानियाँ तथा कोणिक राजा की छोटी माताएँ थीं । भगवान महावीर के वैराग्यमय धर्मोपदेश को सुनकर वे सब चन्दनबाला आर्या के पास दीक्षित हुई । इन सब महारानियों ने कठोर तप साधना द्वारा अपने कर्मों का क्षय किया। इन महारानियों के नाम एवं उनके द्वारा किये गये तप इस प्रकार हैं
रत्नावली कनकावली
लघुसिंह निष्क्रीड़ित
महासिंह निष्क्रीड़ित
सप्त सप्तमिका, अष्ट- अष्टमिका, नव नवमिका, दस-दसमिका भिक्षु पडिमा
लघु सर्वतोभद्र महासर्वतो भद्र
०८. रामकृष्णा
भद्रोत्तर
०९. पितृसेनकृष्णा- मुक्तावली
१०. महासेनकृष्णा- आयंबिल वर्द्धमान तप
०१. काली
०२. सुकाली
०३. महाकाली
०४. कृष्णा
०५. सुकृष्णा
०६. महाकृष्णा
०७. वीरकृष्णा
उपर्युक्त महारानियों ने संयम अंगीकार कर स्वयं को तप रूपी अग्नि में झोंक दिया। उनकी तपस्या का वर्णन सुनकर हमें भी तप करने की विशेष
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