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________________ | 196 जिनवाणी- जैनागम-साहित्य विशेषाङ्क आठ वर्गों का संक्षिप्त परिचय प्रथम वर्ग- अन्तगड़दशा सूत्र के प्रथम वर्ग में दस राजकुमारों का वर्णन है। इनके नाम हैं- १. गौतमकुमार २. समुद्रकुमार ३. सागर कुमार ४. गम्भीर कुमार ५. स्तिमित कुमार ६. अचल कुमार ७. कम्पिल कुमार ८. अक्षोभ कुमार ९. प्रसेनजित कुमार १०. विष्णु कुमार। इन सभी राजकुमारों ने दीक्षा ग्रहण कर बारह वर्ष की दीक्षा पर्याय का पालन कर शत्रुजय पर्वत पर मासिक संलेखना करके मुक्ति प्राप्त की। द्वारिका नगरी का भी वर्णन इस वर्ग में आया है। दूसरा वर्ग-इस वर्ग में उन आठ राजकुमारों का वर्णन है जो अन्धकवृष्णि राजा एवं धारिणी रानी के पुत्र थे। उन्होंने भी दीक्षा अंगीकार कर सोलह वर्ष तक दीक्षा पर्याय का पालन किया और अन्तिम समय शत्रुजय पर्वत पर एक मास की संलेखना कर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त हुए। तीसरा वर्ग-इस वर्ग के १३ अध्ययन हैं। प्रथम ६ अध्ययनों में अणीयसेन कुमार, अनन्तसेन, अजितसेन, अनिहतरिपु, देवसेन और शत्रुसेन कुमारों का वर्णन है। ये छहों कुमार नाग गाथापति के पुत्र एवं सुलसा के अंगजात थे। बीस वर्ष इनका दीक्षा पर्याय रहा तथा चौदह पूर्वो का अध्ययन कर अन्तिम समय में ये एक मास की संलेखना कर मोक्षगामी हुए। सातवां अध्ययन सारण कुमार का है। आठवें अध्ययन में गजसुकुमाल अनगार का वर्णन है। कृष्ण वासुदेव, देवकी महारानी, उनके छ: पुत्र मुनियों का ३ संघाड़ों में एक दिन आहार के लिए राजमहल में आना, देवकी की पुत्र अभिलाषा एवं श्रीकृष्ण की मातृ भक्ति का चित्रण भी इसमें आया है। नवां अध्ययन सुमुख कुमार का है, जिन्होंने भगवान अरिष्टनेमी के पास दीक्षा अंगीकार कर २० वर्ष के चारित्रपर्याय का पालन किया एवं अन्तिम समय संथारा धारण कर मोक्षगामी हुए। १० से १३ इन ४ अध्ययनों में दुर्मुख, कूपदारक, दारुक एवं अनादृष्टि का वर्णन आया है। चतुर्थ वर्ग- इस वर्ग के १० अध्ययन हैं। इसमें जालि, मयालि आदि १० राजकुमारों का वर्णन है। ये सभी राजश्री वैभव में पले होते हुए भी अरिष्टनेमि के उपदेश सुनकर दीक्षित हो गए एवं कठोर साधना कर मोक्षगामी हुए। पांचवा वर्ग- इस वर्ग के १० अध्ययन हैं। इनमें पहले ८ अध्ययन पद्मावती आदि ८ रानियों के हैं। ये सभी कृष्ण वासुदेव की पटरानियां थी। सुरा, अग्नि और द्वीपायन ऋषि के कोप के कारण भविष्य में द्वारिका नगरी के विनाश का कारण जानकर एवं भगवान अरिष्टनेमी की धर्मसभा में वैराग्य मय उपदेश सुनकर वे दीक्षित हो गई तथा कठोर धर्म-साधना कर सिद्ध ,बुद्ध , मुक्त हो गई। ९वें एवं १०वें अध्ययनों में श्री कृष्ण वासुदेव की पुत्रवधुएँ 'मूलश्री' एवं 'मूलदत्ता' का वर्णन है। ये भी भगवान के उपदेशों को सुनकर संसार की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003218
Book TitleJinvani Special issue on Jain Agam April 2002
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year2002
Total Pages544
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Canon, & Agam
File Size23 MB
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