SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 180
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ space | समवायांग सूत्र - एक परिचय 165| आचार्य-उपाध्याय के लिये अत्यधिक उपयोगी एवं जानने योग्य आवश्यक सभी बातों का संकलन है। इस आगम में जहां आत्मा संबंधी स्वरूप का, कर्म-बन्ध के हेतुओं का, संसार वृद्धि के कारणों का विवेचन मिलता है, वहीं कर्म-बन्धनों से मुक्ति पाने के उपाय महाव्रत, समिति, गुप्ति, दशविध धर्म तप, सयम, परीषह जय आदि का भी सांगोपांग विवेचन मिलता है। खगोल-भूगोल संबंधी, नारकी-देवता संबंधी जानकारी के साथ तीर्थंकरों के गण, गणधर, साधु, मन:पर्यवज्ञानी, अवधिज्ञानी, पंचकल्याणक तिथियां आदि की ऐतिहासिक जानकारी भी प्रदान की गयी है। ___ मुख्य रूप से यह आगम गद्य रूप है, पर कहीं-कहीं बीच-बीच में नामावली व अन्य विवरण संबंधी गाथाएँ भी आयी हैं। भाषा की दृष्टि से भी यह आगम महत्त्वपूर्ण है। कहीं-कहीं अलंकारों का प्रयोग हुआ है। संख्याओं के सहारे भ, ऋषभदेव, पार्श्वनाथ, महावीर स्वामी और उनके पूर्ववर्ती-पश्चात्वर्ती चौदहपूर्वी, अवधिज्ञानी और विशिष्ट ज्ञानी मुनियों का भी उल्लेख है। समवायांग सूत्र के अनेक सूत्र आचारांग में, अनेक सूत्रकृतांग में, अनेक भगवती सूत्र में, अनेक प्रश्नव्याकरण सूत्र में, औपपातिक सूत्र में, जीवाभिगम सूत्र में, पन्नवणा सूत्र में, जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र में, सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र में, उत्तराध्ययन सूत्र में तथा अनुयोग द्वार सूत्र में कहीं संक्षेप में तो कहीं विस्तार से उल्लिखित हैं। यों तो समवायांग सूत्र का प्रत्येक समवाय, प्रत्येक सूत्र प्रत्येक विषय के जिज्ञासुओं एवं शोधार्थियों के लिये ज्ञातव्य महत्त्वपूर्ण तथ्यों का महान भण्डार है, पर समवायांग के अन्तिम भाग को एक प्रकार से ‘‘संक्षिप्त जैन पुराण'' की संज्ञा दी जा सकती है। वस्तुत: वस्तुविज्ञान, जैन सिद्धान्त और जैन इतिहास की दृष्टि से समवायाग एक अत्यधिक महत्त्व का अंग श्रुत है। -रजिस्ट्रार, अखिल भारतीय श्री जैन रत्न आध्यात्मिक शिक्षण बोर्ड, घोडों का चौक, जोधपुर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003218
Book TitleJinvani Special issue on Jain Agam April 2002
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year2002
Total Pages544
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Canon, & Agam
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy