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व्याख्याप्रज्ञप्ति सूत्र
डॉ० धर्मचन्द जैन
व्याख्याप्रज्ञप्ति (भगवती) सूत्र में प्रश्नोत्तर शैली में जीव, अजीव, स्वमत, परमत, लोक, अलोक आदि से संबद्ध सूक्ष्म जानकारियाँ विद्यमान हैं। इसमें प्राणिशास्त्र, भूगोल, खगोल, भौतिकशास्त्र, स्वप्न, गणित, मनोविज्ञान, वनस्पतिशास्त्र आदि विविध विषयों से संबंधित तात्त्विक चर्चा मिलती है। यह सूत्र वैज्ञानिकों के लिए भी अध्येतव्य है। लेखक ने व्याख्याप्रज्ञप्ति की विषयवस्तु से परिचित कराने के साथ इसमें हुए अंगबाह्य आगमों के अतिदेश की भी चर्चा की I
-सम्पादक
पंचम अंग व्याख्याप्रज्ञप्ति सूत्र का अपर नाम 'भगवतीसूत्र' है। ‘भगवती’ शब्द व्याख्याप्रज्ञप्ति की पूज्यता हेतु विशेषणरूप में प्रयुक्त हुआ था, किन्तु इस शब्द को इतनी प्रियता मिली कि अब व्याख्याप्रज्ञप्ति की अपेक्षा 'भगवती' नाम ही अधिक प्रचलित हो गया है। उपलब्ध अंग आगमों मैं भगवतीसूत्र सर्वाधिक विशाल है। प्रश्नोत्तर शैली में विरचित इस आगम में विषयवस्तु का वैविध्य है। इसमें अनेक दार्शनिक गुत्थियों का समाधान है। प्राणिशास्त्र, गर्भशास्त्र, भौतिक शास्त्र, रसायन शास्त्र, भूगर्भ शास्त्र, स्वप्न शास्त्र, गणित, ज्योतिष, इतिहास, खगोल, भूगोल, मनोविज्ञान, अध्यात्म, पुद्गल, वनस्पति आदि अनेक विषयों पर भगवती में रोचक एवं उपयोगी जानकारी उपलब्ध है । समवायांग एवं नन्दीसूत्र के अनुसार व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र में ३६००० प्रश्नों का समाधान है। सभी प्रश्नों का उत्तर भगवान महावीर द्वारा किया गया है। प्रश्नकर्त्ता मुख्यत: गौतम गणधर हैं। प्रसंगानुसार रोह अनगार, जयन्ती श्राविका, मृदुक श्रमणोपासक, सोमिल ब्राह्मण, तीर्थंकर पार्श्व के शिष्य कालास्यवेशीपुत्र, तुंगिका नगरी के श्रावक आदि के भी प्रश्नों का समाधान हुआ है। ऐतिहासिक दृष्टि से इसमें मंखलिगोशालक, जमालि, शिवराजर्षि, स्कन्द परिव्राजक, तामली तापस आदि से संबद्ध जानकारी भी मिलती है। गणित की दृष्टि से पाश्र्वापत्यीय गांगेय अणगार के प्रश्नोत्तर महत्त्वपूर्ण हैं ।
भगवतीसूत्र के अध्ययनों को 'शतक' या 'शत' नाम दिया गया है। इसमें ४१ शतक तथा १०५ अवान्तर शतक हैं। अवान्तर शतकों एवं अन्य शतकों की संख्या मिलाकर १३८ होती है । पहले से ३२ वें शतक तक किसी भी शतक में अवान्तर शतक नहीं है । ३३वें से ३५ वें शतक तक ७ शतकों में प्रत्येक में १२-१२ अवान्तर शतक हैं। चालीसवें शतक में २१ अवान्तर शतक हैं । ४१ वें शतक में अवान्तर शतक नहीं है। इन सभी शतकों को मिलाने से १३८ शतक होते है {३२ + ८४ (१२X ७) + २१ + १ } | उद्देशकों की संख्या १८८३ या १९२३ है। वर्तमान में इसका परिमाण १५७५१
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