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________________ सूत्रकृतांग का वर्ण्य विषय एवं वैशिष्ट्य डॉ. अशोक कुमार जैन सूत्रकृतांग दो श्रुतस्कन्धों एवं २३ अध्ययनों में विभक्त है। इसमें विभिन्न दार्शनिक विचारधाराओं के साथ साधक की साधना को उच्चता प्रदान करने वाले सूत्र एवं प्रेरकतत्त्व उपलब्ध हैं। आचारांग के अनन्तर सूत्रकृतांग को जैनागमों में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण आगम माना जाता है। जैन विश्वभारती, लाडनूं के प्राध्यापक डॉ. अशोक जी ने अपने आलेख में सूत्रकृतांग की विषयवस्तु का संक्षेप में प्रतिपादन किया है। - सम्पादक नाम बोध अंग - साहित्य में सूत्रकृतांग दूसरा अंग है। समवाय, नंदी और अनुयोगद्वार में इस आगम का नाम 'सूयगडो' है। नियुक्तिकार भद्रबाहु स्वामी ने इस आगम के तीन गुणनिष्पन्न नाम बताए हैं- १. सूतगड २. सुत्तकड ३. सूयगड- सूचाकृत। यह मौलिक दृष्टि से भगवान महावीर से सूत (उत्पन्न) है तथा यह ग्रन्थ रूप में गणधर के द्वारा कृत है, इसलिए इसका नाम सूत्रकृत (सूतगड) है। इसमें सूत्र के अनुसार तत्त्व बोध किया जाता है, इसलिए इसका नाम सुत्तकड है। इसमें स्व और पर समय की सूचना है। इसलिए इसका नाम सूचनाकृत (सुयगड) है। वस्तुतः सूत, सुत्त और सूय ये तीनों सूत्र के ही प्राकृत रूप हैं। उसी के तीन गुणात्मक नामों की परिकल्पना की गयी। समवाय और नंदी में यह स्पष्टतया उल्लिखित है कि सूत्रकृतांग में स्वसिद्धान्त एवं परसिद्धान्त की सूचना है"सूयगडे णं ससमया सूइज्जति, परसमया सूइज्जति, ससमय परसमय सूइज्जति" जो सूचक होता है उसे सूत्र कहा जाता है। इस आगम की पृष्ठभूमि में सूचनात्मक तत्त्व की प्रधानता है, इसलिए इसका नाम सूत्रकृत है। आचार्य वीरसेन के अनुसार सूत्रकृतांग में अन्य दार्शनिकों का वर्णन है । इस आगम की रचना इसी के आधार पर की गई, इसलिए इसका नाम सूत्रकृत रखा गया। सूत्रकृत शब्द के अन्य व्युत्पत्तिपरक अर्थों की अपेक्षा यह अर्थ अधिक संगत प्रतीत होता है । 'सुत्तगड' और बौद्धों के 'सुत्तनिपात' में नाम- साम्य प्रतीत होता है। सूत्रकृतांग का स्वरूप यह दो श्रुतस्कन्धों में विभक्त है। प्रथम श्रुतस्कन्ध में १६ अध्ययन हैं। जिनके नाम हैं- समए (समय), वेयालिए (वैतालीय), उवसग्ग परिणा (उपसर्ग परिज्ञा), इत्थी परिण्णा ( स्त्री परिज्ञा), णरयविभत्ति (नरक विभक्ति), महावीरत्थुई (महावीर स्तुति), कुसीलपरिभासितं ( कुशील परिभाषित), वीरियं (वीर्य), धम्मो (धर्म), समाही (समाधि), मग्गे (मार्ग), समोसरणं (समवसरण), आहत्तहीयं (याथातथ्य), गंथो (ग्रन्थ), जमईए ( यमकीय), गाहा (गाथा)। पहला श्रुतस्कन्ध प्रायः पद्यों में है। उसमें केवल एक अध्ययन में गद्य का प्रयोग हुआ है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003218
Book TitleJinvani Special issue on Jain Agam April 2002
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year2002
Total Pages544
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Canon, & Agam
File Size23 MB
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