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________________ | आगम का अध्ययन क्यों ? 871 जैसा कि उत्तराध्ययन सूत्र के २९ वें अध्ययन में शिष्य के प्रश्न करने पर फरमाया-- "सज्झाएणं भन्ते! जीवे कि जणयइ। सज्झाएणं णाणावरणिज्ज कम्म खवेइ।।" शिष्य के प्रश्न करने पर कि भगवन् ! स्वाध्याय करने से जीव को किस फल की प्राप्ति होती है? भगवान ने फरमाया ज्ञानावरणीय कर्म का क्षय होता है। अज्ञान दु:ख देता है। जैसा कि आचार्यप्रवर पूज्य श्री १००८ श्री हस्तीमल जी म.सा. ने कहा "अज्ञान से दुःख दूना होता, अज्ञानी धीरज खो देता। मनके अज्ञान को दूर करो, स्वाध्याय करो स्वाध्याय करो। जिनराज भजो सब दोष तजो, अब सूत्रों का स्वाध्याय करो।" आगे भी-“करलो श्रुतवाणी का पाठ भविकजन मन मल हरने को। बिन स्वाध्याय ज्ञान नहीं होगा, ज्योति जगाने को। राग द्वेष की गांठ गले नहीं, बोधि मिलाने को।।" आगमों का अध्ययन श्रद्धापूर्वक आगमों को श्रद्धा पूर्वक पढ़ना चाहिए, क्योंकि गीताकार श्रीकृष्ण ने कहा 'श्रद्धावान् लभते ज्ञानम्।' श्रद्धालु व्यक्ति ही सम्यग्ज्ञान प्राप्त कर सकता है। श्रद्धा का मिलना अत्यन्त कठिन है। इसीलिए शास्त्रों में कहा गया है "सद्धा परम दुल्लहा।" श्रद्धा परम दुर्लभ है। भूल भटक कर भी आगमों का अध्ययन शंका की दृष्टि से नहीं करना चाहिए। क्योंकि- “संशयात्मा विनश्यति।" संशय वाली आत्माएं नष्ट प्राय: हो जाती हैं। श्रद्धापूर्वक पढ़ा गया आगम कर्म-निर्जरा का कारण बनता है। जैन आगमों को चार अनुयोगों में बांटा गया है- १. चरणकरणानुयोग २. द्रव्यानुयोग ३. गणितानुयोग और ४. धर्मकथानुयोग। अनन्त जीवात्माओं ने इन चार अनुयोगों के माध्यम से संसार से किनारा किया है, करते हैं और भविष्य काल में भी करेंगे। __ आगम की महिमा का कहां तक व्याख्यान किया जाय, मेरी जिह्वा तुच्छ है और आगम की महिमा अपार है। अन्त में तमेव सच्चं णीसंकं जं जिणेहिं पवेइयं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003218
Book TitleJinvani Special issue on Jain Agam April 2002
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year2002
Total Pages544
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Canon, & Agam
File Size23 MB
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