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वैशाली के लोग अपनी स्त्रियों की बड़ी कद्र करते हैं। उनका सम्मान करते हैं, उन पर कभी जोर-जबरदस्ती नहीं करते, उनपर अत्याचार नहीं करते हैं। भन्ते ! मैंने ऐसा सुना है।' फिर महात्मा बुद्ध ने पूछा- 'आनन्द ! सुना है, कि वहाँ जो पूजा का स्थान है, जो पूज्य हैं, जो मन्दिर है, उसमें बाधा-व्यवधान तो नहीं पड़ता?' आनन्द ने कहा— 'हाँ भन्ते ! ऐसा ही सुना है, कि वैशाली में जो उनके पूज्य-स्थान हैं, उनकी निरन्तर-पूजा करते हैं,
और जो एक बार मन्दिर को दिया, उसमें किसीप्रकार कमी नहीं करते हैं।' अन्तिम-बार महात्मा बुद्ध ने कहा, 'आनन्द ! यह सुना है, कि वैशाली के लोगों के पास जो अर्हत्-लोग जाते हैं, जो ज्ञानी-लोग हैं, गुणी हैं, वे उनका सम्मान करते हैं।' आनंद ने कहा कि 'हाँ भन्ते ! मैंने सुना है कि वे अर्हतों का, ज्ञानियों का, जो बाहर से आते हैं, उनका सम्मान करते हैं, और सबको स्वच्छन्द-विचरण करने देते हैं। सबको स्वच्छन्द-रूप से विचार प्रकट करने का मौका देते हैं।' आनन्द ने कहा । बुद्धदेव ने कहा- 'आनन्द ! तुम्हें बताता हँ, कि जिनमें ये सात-गुण हैं, संसार की कोई शक्ति उन्हें पराजित नहीं कर सकती है।' इसप्रकार, उन्होंने वर्षकार से कहा, कि 'भाई वर्षकार !, तुम्हारा वैशाली पर दाँत गड़ाना सम्भव नहीं है। यहाँ के लोग एकसाथ बैठते हैं, उठते हैं, जो करते है, उसपर दृढ़ रहते हैं, और अपने बुजुर्गों की कद्र करते हैं, अपनी स्त्रियों का सम्मान करते हैं, अपने पूज्य-स्थानों की पूजा करते हैं, ज्ञानी-गुणियों का समादर करते हैं। बाहर से आये हुये लोगों को स्वतन्त्रतापूर्वक अपने विचार प्रकट करने का अवसर देते हैं। ऐसे गुणी-लोगों पर कोई राजा, कोई सम्राट कभी शासन नहीं कर सकता, उनका बाल-बाँका नहीं कर सकता।' __यह था वैशाली का गुण ! इन्हीं गुणों के कारण वैशाली अजेय रही। जैसा कि महात्मा बुद्ध ने कहा था, कि जितने दिनों तक ये गुण वैशाली में रहेंगे, उतने दिनों तक वैशाली का कोई बाल-बाँका नहीं कर सकता, और यह बात वर्षकार ने गाँठ बाँध ली, और लौट गया। वर्षकार ने वैशाली के नागरिकों में फूट पैदा कर दी, और फूट के कारण वैशाली का गौरव जाता रहा। परन्तु, बुद्धदेव के बाद भी वैशाली एकदम लुप्त हो गई हो, ऐसा नहीं हुआ। बुद्धदेव के कोई आठ-दस सौ वर्ष के बाद तक वैशाली का गौरव जैसा-का-तैसा बना रहा। संसार के इतिहास को इस भूमि ने प्रजातन्त्र दिया। पंचायती राज स्थापित किया। इस भूमि ने एकमत होकर रहना सिखलाया। इस भूमि ने स्त्रियों का सम्मान करना सिखाया। आपको मालूम होगा कि बुद्धदेव आजीवन इस बात पर अडिग रहे कि स्त्रियों का संघ में प्रवेश नहीं होना चाहिये। लेकिन वैशाली में आकर उन्होंने यह भी निश्चय किया कि स्त्रियों को भी इतना अधिकार मिलना चाहिये, जितना पुरुषों को है। निश्चय ही वैशाली की महिलाओं को देखकर उनके मन में यह बात आई होगी कि यह गलत बात है कि स्त्रियों को अधिकार नहीं दिया जाये। वैशाली के नागरिक स्त्रियों का आदर करते थे, सम्मान करते थे, वे चाहते तो उनके साथ जोर-जबरदस्ती भी कर सकते थे; किन्तु इतिहास इसका प्रमाण है कि ऐसा
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प्राकृतविद्या-जनवरी-जून '2002 वैशालिक-महावीर-विशेषांक . Jain Education International
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