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________________ यहाँ रहते थे। यहाँ के नाविक दूर-दूर से धनराशि संग्रह करके ले आते थे। कला का भी यह स्थान एक प्रमुख-केन्द्र था। ज्ञान और शक्ति का तो यह गढ़ ही माना जाता था। लिच्छवियों के भय से बड़े-बड़े राज्य काँपते थे। जहाँ तक व्यापार का सवाल है, यहाँ के जो निगम थे, जो कारपोरेशन थे, सेठों के काम करनेवाले जो संघ थे; उनकी इतनी शाखायें थीं कि सारे संसार में उनकी हुण्डियाँ चलती थीं। इन सेठों के जो निगम या कारपोरेशन.थे, सब अलग-अलग थे। शरीफों के अलग थे, श्रेणियों के अलग थे, श्रमिकों के अलग थे --इन सबका मिला हुआ संघ भी था। सन् 191314 ई. की खुदाई में तो अधिक गहराई तक नहीं जाया जा सका, इसलिये ज्यादा-से-ज्यादा आज से डेढ़-पौने दो हजार वर्ष तक की चीजें ही मिल पाईं। लेकिन, हमारे जिन ग्रन्थों में वैशाली की चर्चा मिलती है, वे उससे काफी प्राचीन हैं। पिछले वर्षों की खुदाई में उससे भी पुरानी चीजें प्राप्त हुई हैं। वे निश्चित-रूप से आज से ढाई हजार वर्ष-पूर्व की वैशाली के सम्बन्ध में गवाही देती हैं। लेकिन, यह नगरी उससे भी पुरानी है। वैशाली की परम्परा यहीं समाप्त नहीं होती है। मैं सोचता हैं कि क्या यह महिमामयी वैशाली है? आज जो मैं देख रहा हूँ, क्या यहीं उन लिच्छवियों और वज्जियों की सन्तानें है, यहीं वे मनुष्य थे? उनमें कौन-सी विशेषता थी कि सारी दुनिया में उनका सिक्का चलता था, उनकी ध्वजा फहराती थी। भारतवर्ष में ऐसा कोई महान् सम्राट भी हिम्मत नहीं कर सकता था कि लिच्छवि और वज्ज़ि उनके भीतर आया था। आदम तो वे भी थे। महात्मा बुद्ध ने खुद इसका विश्लेषण किया है। एक बार अजातशत्रु के महामन्त्री वर्षकार ने बुद्धदेव से पूछा था, कि वे उन पर चढ़ाई करें या न करें, उनको जीता जा सकता है, या नहीं? बुद्धदेव ने बड़ी चतुरता के साथ अपने शिष्य आनन्द, जिनके नाम पर तथाकथित आनन्दपुर गाँव है, प्रश्न किया, क्यों आनन्द ! क्या वज्जि-लोग एक साथ उठते-बैठते हैं? एक होकर काम करते हैं? क्या ऐसा तुमने सुना है?' आनन्द ने कहा- 'हाँ भन्ते ! सुना है, कि वैशाली के लोग एक साथ उठते हैं, एक साथ बैठते हैं, एक साथ सभा-पंचायत करते हैं।' बुद्धदेव ने फिर पूछा, 'क्या तुमने यह भी सुना है, कि एक बार जो अपनी पंचायत में तय कर लेते हैं, उसको सभी मानते हैं, ऐसा तो नहीं होता, कि बाद में कोई कहे कि हमने तो वोट नहीं दिया था? मैं क्यों मानने जाऊँ?' आनन्द ने कहा, 'हाँ ! ऐसा ही सुना है, कि इस वैशाली-नगर के रहनेवाले जो एक-बार निश्चय कर लेते हैं, उससे एक बच्चा भी नहीं हिलता, सब उसका पालन करते हैं।' फिर बुद्धदेव ने पूछा- 'अच्छा आनन्द ! तुमने यह भी सुना है, कि वैशाली के लोग अपने बूढों का सम्मान करते हैं, अपने बुजुर्गों की कद्र करते हैं, उनकी बातों को मानते हैं।' आनन्द ने कहा- 'हाँ भन्ते ! सुना है।' बुद्ध ने फिर कहा- 'आनन्द! तुमने सुना है, कि वैशाली के लोग अपने स्त्रियों का सम्मान करते हैं, अपनी कुल-कुमारियों का सम्मान करते हैं। उनके प्रति कोई जोर-जबरदस्ती तो नहीं करते?' आनन्द ने कहा— 'भन्ते ! सुना है, कि 00 86 प्राकृतविद्या-जनवरी-जून '2002 वैशालिक-महावीर-विशेषांक For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.003216
Book TitlePrakrit Vidya 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2001
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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