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आनन्द को इसप्रकार बताने के बाद बुद्ध ने वस्सकार से कहा, "मैंने ये कल्याणकारी सात धर्म वज्जियों को वैशाली में बताये थे।" इस पर वस्सकार ने बुद्ध से कहा, हे गौतम ! इसप्रकार मगधराज वज्जियों को युद्ध में तब तक नहीं जीत सकते, जब तक कि वह कूटनीति द्वारा उनके संगठन को न तोड़ दें।" बुद्ध ने उत्तर दिया, “तुम्हारा विचार ठीक है।” इसके बाद वह मंत्री चला गया।
- वस्सकार के जाने पर बुद्ध ने आनन्द से कहा- “राजगृह के निकट रहनेवाले सब भिक्षुओं को इकट्ठा करो।" तब उन्होंने भिक्षु-संघ के लिए निम्नलिखित सात धर्मों का विधान किया1. हे भिक्षुओं ! जब तक भिक्षु-गण पूर्ण रूप से निरन्तर परिषदों में मिलते रहेंगे। 2. जब तक वे संगठित होकर मिलते रहेंगे, उन्नति करते रहेंगे तथा संघ के कर्तव्यों का
पालन करते हरेंगे। 3. जब तक वे किसी ऐसे विधान को स्थापित नहीं करेंगे, जिसकी स्थापना पहले न हई
हो, स्थापित विधानों का उल्लंघन नहीं करेंगे तथा संघ के विधानों का अनुसरण करेंगे। 4. जब तक वे संघ के अनुभवी गुरुओं, पिता तथा नायकों का सम्मान तथा समर्थन करते
रहेंगे तथा उनके वचनों को ध्यान से सुनकर मानते रहेंगे। 5. जब तक वे उस लोभ के वशीभूत न होंगे, जो उनमें उत्पन्न होकर दु:ख का करण
बनता है। 6. जब तक वे संयमित जीवन में आनन्द का अनुभव करेंगे। 7. जब तक वे अपने मन को इसप्रकार संयमित करेंगे, जिससे पवित्र एवं उत्तम पुरुष उनके .. पास आयें और आकर सुख-शान्ति प्राप्त करें। ___ तब तक भिक्षु-संघ का पतन नहीं होगा, उत्थान ही होगा। जब तक भिक्षुओं में ये सात धर्म विद्यमान हैं, जब तक वे इन धर्मों में भली-भाँति दीक्षित हैं, तब तक उनकी उन्नति होती रहेगी। ___महापरिनिव्वान सुत्त' के उपर्युक्त उद्धरण से वैशाली-गणतन्त्र की उत्तम-व्यवस्था एवं अनुशासन की पुष्टि होती है। वैशाली के लिए विहित सात धर्मों को (कुछ परिवर्तित करके) बुद्ध ने अपने संघ के लिए भी अपनाया; इससे स्पष्ट है कि 2600 वर्ष पूर्व के प्राचीन गणतन्त्रों में वैशाली-गणतन्त्र श्रेष्ठ तथा योग्यतम था।
लिच्छवियों के कुछ अन्य गुणों ने उन्हें महान् बनाया। उनके जीवन में आत्म-संयम की भावना थी। वे लकड़ी के तख्त पर सोते थे, वे सदैव कर्तव्यनिष्ठ रहते थे। जब तक उनमें ये गुण रहे, अजातशत्रु उनका बाल-बाँका भी न कर सका ।15 शासन-प्रणाली:
लिच्छवियों के मुख्य अधिकारी थे राजा, उपराजा, सेनापति तथा भाण्डागारिक। इनमें
प्राकृतविद्या-जनवरी-जून '2002 वैशालिक-महावीर-विशेषांक Jain Education International
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