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कि वहाँ राजा विशाल का गढ़ था । एक मुद्रा पर अंकित था – “वेशलि इनु... ... कारे सयानक।” जिसका अर्थ किया गया, "वैशाली का एक भ्रमणकारी-अधिकारी । ” इस खुदाई में जैन-तीर्थंकरों की मध्यकालीन - मूर्तियाँ भी प्राप्त हुई हैं ।
वैशाली की जनसंख्या के मुख्य अंग थे— क्षत्रिय । श्री रे चौधरी के शब्दों में "कट्टर हिन्दू-धर्म के प्रति उनका मैत्रीभाव प्रकट नहीं होता। इसके विपरीत, ये क्षत्रिय जैन, बौद्ध जैसे अब्राह्मणसम्प्रदायों के प्रबल पोषक थे । 'मनुस्मृति' के अनुसार, “झल्ल, मल्ल, द्रविड़, खस आदि के समान वे व्रात्य राजन्य थे । "" यह सुविदित है कि 'व्रात्य' का अर्थ यहाँ 'जैन' है, क्योंकि जैन साधु एवं श्रावक अहिंसा सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह – इन पाँच व्रतों का पालन करते हैं। 'मनुस्मृति' के उपर्युक्त श्लोकों में लिच्छवियों को 'निच्छवि' कहा गया है। कुछ विद्वानों ने लिच्छवियों को तिब्बती उद्गम' सिद्ध करने का प्रयत्न किया है; परन्तु यह मत स्वीकार्य नहीं है । अन्य विद्वान् के अनुसार लिच्छवि भारतीय क्षत्रिय हैं, यद्यपि यह एक तथ्य है कि लिच्छवि- गणतन्त्र के पतन के बाद वे नेपाल चले गये और वहाँ उन्होंने राजवंश स्थापित किया । 12
'लिच्छवि' शब्द की व्युत्पत्ति :
जैनग्रंथों में लिच्छवियों को 'लिच्छई' अथवा 'लिच्छवि' कहा गया है। व्याकरण की दृष्टि से, 'लिच्छवि' शब्द की व्युत्पत्ति 'लिच्छु' शब्द से हुई है। यह किसी वेश का नाम रहा होगा । बौद्ध-ग्रंथ 'खुद्दकपाठ' (बुद्धघोषकृत) की 'अट्ठकथा' में निम्नलिखित रोचक कथा हैकाशी की रानी ने दो जुड़े हुए मांस - पिण्डों को जन्म दिया और उनको गंगा नदी में फिकवा दिया। किसी साधु ने उनको उठा लिया और उनका स्वयं पालन-पोषण किया । वे निच्छवि (त्वचा-रहित) थे। कालक्रम से उनके अंगों का विकसित हुआ और वे बालक-बालिका बन गये। बड़े होने पर वे दूसरे बच्चों को पीड़ित करने लगे, अत: उन्हें दूसरे बालकों से अलग कर दिया है। (वज्जितव्व- वर्जितव्य ) । इसप्रकार ये ' वज्जि' नाम से प्रसिद्ध हुए । साधु ने उन दोनों का परस्पर विवाह कर दिया और राजा से 300 योजन भूमि उनके लिए प्राप्त की। इसप्रकार उनके द्वारा शासित प्रदेश 'वज्जि - प्रदेश' कहलाया । "
सात धर्म :
मगधराज अजातशत्रु साम्राज्य विस्तार के लिए लिच्छवियों पर आक्रमण करना चाहता था। उनके अपने मंत्री वस्सकार ( वर्षकार ) को बुद्ध के पास भेजते हुए कहा—“हे ब्राह्मण ! महात्मा बुद्ध के पास जाओ और मेरी और से उनके चरणों में प्रणाम करो । मेरी ओर से उनके आरोग्य तथा कुशलता के विषय में पूछकर उनसे निवेदन करो कि वैदेही-पुत्र मगधराज अजातशत्रु ने वज्जियों पर आक्रमण का निश्चय किया है और मेरे ये शब्द कहो“वज्जि - गण चाहे कितने शक्तिशाली हों, मैं उनका उन्मूलन करके पूर्ण विनाश कर दूँगा।” इसके बाद सावधान होकर तथागत के वचन सुनो।" 13 और आकर मुझे बताओ । तथागत
प्राकृतविद्या�जनवरी-जून 2002 वैशालिक - महावीर - विशेषांक
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