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________________ वैशाली-गणतन्त्र की पद्धति को अपनाया। हिन्दू-राजशास्त्र के विशेषज्ञ श्री काशीप्रसाद जायसवाल के शब्दों में “बौद्ध-संघ ने राजनैतिक-संघों से अनेक बातें ग्रहण की। बुद्ध का जन्म गणतन्त्र में हुआ था। उनके पड़ोसी गणतन्त्र-संघ थे और वे उन्हीं लोगों में बड़े हुए। उन्होंने पर संघ का नामकरण 'भिक्षु-संघ' अर्थात् भिक्षुओं का गणतन्त्र किया। अपने समकालीन गुरुओं का अनुकरण करके उन्होंने अपने धर्म-संघ की स्थापना में गणतन्त्र संघों के नाम तथा संविधान को ग्रहण किया। पालि-सूत्रों में उद्धृत बुद्ध के शब्दों के द्वारा राजनैतिक तथा धार्मिक संघ-व्यवस्था का सम्बन्ध सिद्ध किया जा सकता है। बौद्ध ग्रन्थ एवं वैशाली : इसप्रकार यह स्पष्ट है कि वैशाली-गणतन्त्र के इतिहास तथा कार्य-प्रणाली के ज्ञान के लिए हम बौद्ध-ग्रन्थों के ऋणी हैं। विवरणों की उपलब्धि के विषय में ये विवरण निराले हैं। सम्भवत: इसीकारण श्री जायसवाल ने इस गणतंत्र को विवरणयुक्त गणराज्य' (Recorded Republic) शब्द से सम्बोधित किया है। क्योंकि अधिकांश गणराज्यों का अनुमान कुछ सिक्कों या मुद्राओं से या पाणिनीय व्याकरण के कुछ सूत्रों में अथवा कुछ ग्रन्थों में यत्र-तत्र उपलब्ध संकेतों से किया गया है। इसीकारण विद्वान् लेखक ने इसे 'प्राचीनतम गणतन्त्र' घोषित किया है, जिसके लिखित-साक्ष्य हमें प्राप्त हैं और जिसकी कार्य-प्रणाली की झाँकी हमें महात्मा बुद्ध के अनेक संवादों में मिलती है। __वैशाली-गणतन्त्र का अस्तित्व कम से कम 2600 वर्ष पूर्व रहा है। 2500 वर्ष पूर्व भगवान् महावीर ने 72 वर्ष की आयु में निर्वाण प्राप्त किया था। यह स्पष्ट ही है कि महावीर वैशाली के अध्यक्ष चेटक के दौहित्र थे। महात्मा बुद्ध महावीर के समकालीन थे। बुद्ध के निर्वाण के शीघ्र पश्चात् बुद्ध के उपदेशों को लेख-बद्ध कर लिया गया था। वैशाली में ही बौद्ध-भिक्षुओं की दूसरी संगीति का आयोजन (बुद्ध के उपदेशों के संग्रह के लिए) हुआ था। - वैशाली-गणतन्त्र से पूर्व (छठी शताब्दी ई०पू०) क्या कोई गणराज्य था? वस्तुत: इस विषय में हम अंधकार में हैं। विद्वानों ने ग्रंथों में यत्र-तत्र प्राप्त शब्दों से इसका अनुमान लगाने का प्रयत्न किया है। वैशाली से पूर्व किसी अन्य गणतन्त्र का विस्तृत-विवरण हमें उपलब्ध नहीं है। बौद्ध-ग्रंथ 'अंगुत्तर निकाय' से हमें ज्ञात होता है कि ईसापूर्व छठी शताब्दी से पहले निम्नलिखित सोलह महाजनपद' थे— 1. काशी, 2. कोसल, 3. अंग, 4. मगध, 5. वज्जि (वृजि), 6. मल्ल, 7. चेतिय (चेदि), 8. वंस (वत्स), 9. कुरु, 10. पंचाल, 11. मच्छ (मत्स्य), 12. शूरसेन, 13. अस्सक (अश्मक), 14. अवन्ति, 15. गन्धार, 16. कम्बोज । इनमें से 'वज्जि' का उदय विदेह-साम्राज्य के पतन के बाद हुआ। ___ जैन-ग्रंथ 'भगवती सूत्र' में इन जनपदों की सूची भिन्नरूप में है, जो निम्नलिखित है1. अंग, 2. वंग, 3. मगह (मगध), 4. मलय, 5. मालव (क), 6. अच्छ, 7. वच्छ (वत्स), 8. कोच्छ (कच्छ?), 9. पाढ (पाण्ड्य या पौड्र), 10. लाढ (लाट या राट), 11. वज्जि 00 72 प्राकृतविद्या जनवरी-जून '2002 वैशालिक-महावीर-विशेषांक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003216
Book TitlePrakrit Vidya 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2001
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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