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वैशाली-गणतन्त्र
- श्री राजमल जैन
भगवान् महावीर का जन्म वैशाली का गणतन्त्रीय-व्यवस्था में हुआ था । वह व्यवस्था कैसी थी? उसके क्या नियम-उपनियम थे, वे कैसे व्यवहार में आते थे तथा उनका क्या महत्त्व था इन सबका संक्षिप्त, किंतु सशक्त परिचय इस आलेख में विद्वान् लेखक ने प्रभूतश्रम एवं गहन अनुसंधानपूर्वक दिया है।
–सम्पादक
वैशाली-गणतन्त्र के वर्णन के बिना जैन-राजशास्त्र का इतिहास अपूर्ण ही रहेगा। वैशाली-गणतन्त्र के निर्वाचित राष्ट्रपति ('राजा' शब्द से प्रसिद्ध) चेटक की पुत्री त्रिशला भगवान् महावीर की पूज्या माता थी। भगवान् महावीर के पिता सिद्धार्थ वैशाली के 'कुण्डग्राम' के शासक थे। अत: महावीर भी वैशालिक' अथवा वैशालिय' के नाम से प्रसिद्ध थे। भगवान् महावीर ने संसार-त्याग के पश्चात् 42 चातुर्मासों में से छ: चातुर्मास वैशाली में किये थे। महात्मा बुद्ध एवं वैशाली:
इसका यह तात्पर्य नहीं कि केवल महावीर को ही वैशाली प्रिय थी। इस गणतन्त्र तथा नगर के प्रति महात्मा बुद्ध का भी अधिक स्नेह था। उन्होंने कई बार वैशाली में विहार किया था तथा चातुर्मास बिताए । निर्वाण से पूर्व जब बुद्ध इस नगर में से गुजरे, तो उन्होंने पीछे मुड़कर वैशाली पर दृष्टिपात किया और अपने शिष्य आनन्द से कहा, "आनन्द ! इस नगर में यह मेरी अन्तिम यात्रा होगी।" यहीं पर उन्होंने सर्वप्रथम भिक्षुणी-संघ की स्थापना की तथा आनन्द के अनुरोध पर गौतमी को अपने संघ में प्रविष्ट किया। एक अवसर पर जब बुद्ध को लिच्छिवियों द्वारा निमन्त्रण दिया गया, तो उन्होंने कहा—“हे भिक्षुओं ? देव-सभा के समान सुन्दर इस लिच्छवि-परिषद् को देखो। ___महात्मा बुद्ध ने वैशाली-गणतन्त्र के आदर्श पर भिक्षु-संघ की स्थापना की। भिक्षु-संघ के 'छन्द' (मतदान) तथा दूसरे प्रबन्ध के ढंगों में लिच्छवि (वैशाली) गणतंत्र का अनुकरण किया गया है।" – (द्र. राहुल सांकृत्यायन-पुरातत्व-निबन्धावली, पृष्ठ 12)। यद्यपि बुद्ध शाक्य-गणतन्त्र से सम्बद्ध थे, (जिसके अध्यक्ष बुद्ध के पिता शुद्धोदन थे), तथापि उन्होंने
प्राकृतविद्या-जनवरी-जून '2002 वैशालिक-महावीर-विशेषांक
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