________________
भुवन - भास्कर को जन्म देती है, उसीप्रकार से आपने इसे जन्म दिया है । अतएव आपके समान भाग्यशालिनी अन्य माता नहीं है ।”
तदनन्तर सब देवों से परिवृत्त इन्द्र ने 'नन्द्यावर्त' के प्रासाद के अलिन्द में ही राजा सिद्धार्थ का बहुत सम्मान किया । रत्न- पन्नाजटित वस्त्राभूषणों को इन्द्र स्वयं उन्हें प्रदान करता है । पुन: एक उत्सव मनाया जाता है । इन्द्र उस उत्सव में एक नृत्य-नाटिका प्रस्तुत करता हुआ 'आनन्द' नामक अभिनय को प्रकट करता है । अन्त में वर्द्धमान को प्रणाम कर इन्द्र सभी देवताओं के साथ अपने निवास स्थान पर चला जाता है ।
प्राचीन 'वज्जि गणतन्त्र' की राजधानी 'वैशाली' में कई दिनों तक लगातार महोत्सव मनाये गये। प्रजा ने अत्यन्त हर्षोल्लास के साथ जन्मोत्सव मनाया। दूर-दूर से कई देशों के राजा इस उत्सव में सम्मिलित हुए थे, जिनमें प्रतापशाली कलिंगनरेश जितशत्रु भी थे । लिच्छवि की नौ उपजातियों ने मिलकर अत्यन्त प्रभावक - महोत्सव मनाकर मानो अपने गौरव-गान को ही प्रकाशित किया था । दिन-प्रतिदिन लोग हर्ष से वृद्धिंगत होते जा रहे थे । राज्य में विपुल, धन, ऐश्वर्य, सम्पदा तथा धान्य की वृद्धि होती जा रही थी । अतः सभी को यह विश्वास हो गया कि महाराजा सिद्धार्थ के तनय का 'वर्द्धमान' नाम सार्थक है । 'नाथकुल' के नाम राजा सिद्धार्थ भी अपने आपको गौरवशाली समझने लगे ।
'वैजयन्त' प्रासाद में नगर की सौभाग्यवती ललनायें महिलाओं के परिकर से वृ मंगल-गीतों के साथ बधावा देने में रात-दिन तन्मय लक्षित हो रही थीं । एक विशिष्ट अनुभूति तथा वातावरण से वैशाली नगरी परिव्याप्त थी । वैशाली के जीवन में ऐसा स्वर्ण-महोत्सव इसके पूर्व कभी नहीं मनाया गया था । असंख्य नर-नारियों के आवागमन से पण्य-वीथियाँ संकुल दिखलाई पड़ रही थीं । घर-घर में प्रभु के जन्म की चर्चा एक नवीन हर्ष तथा उल्लास को विकीर्ण कर रही थी । वैशाली से भी दूर-दूर वन - प्रान्तरों में तथा देश-देशान्तरों में शिशु वर्द्धमान का जन्म और अलौकिक महिमाशाली महोत्सव अपनी-अपनी भाषा में चर्चा का विषय बन गया था । वैशाली के आनन्द - साम्राज्य का तो कोई पार ही नहीं - (साभार उद्धृत — तीर्थंकर महावीर; पृष्ठ 64-65 एवं पृष्ठ 40-43 प्रकाशक - श्री वीर निर्वाण महोत्सव समिति, इन्दौर)
था ।
सम्यग्दर्शन की महिमा
किं कुर्वन्तीह विषया मानस्यो वृत्तयस्तथा ।
आधयो व्याधयो वापि सम्यग्दर्शनसन्मतेः । ।
अर्थ :- जिसे सम्यग्दर्शनरूप सद्बुद्धि प्राप्त हो गई है, उसके लिए विषय तथा मानसिक वृत्तियाँ, आधियाँ और व्याधियाँ क्या कर सकती हैं ?
☐☐ 70
Jain Education International
प्राकृतविद्या जनवरी-जून 2002 वैशालिक - महावीर - विशेषांक
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org