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________________ पक्की प्राचीर बनी हुई थी। चारों दिशाओं में द्वार और सीढ़ियाँ बनी हुई थीं। द्वारों पर सहस्र प्रहरी रहते थे। यदि कोई किसी प्रकार की चोरी से इस पुष्करिणी में अवगाहन या स्नान करने का साहस करता था, तो उसको मृत्यु-दण्ड दिया जाता था। जब राजाओं (सदस्यों) का चुनाव होता था, तो कभी-कभी गण-संघ किसी विशेष-व्यक्ति को भी इसमें स्नान करने की अनुमति प्रदान कर देता था। इस पुष्करिणी की ख्याति सुदूर देशों तक थी। कभी-कभी दूसरे देश के राजा लोग इसमें स्नान करने के लिए संघ से अनुमति देने की प्रार्थना करते थे; किन्तु गणसंघ ने कभी किसी बाहरी व्यक्ति की प्रार्थना स्वीकार नहीं की। वैशाली के लिच्छवि __ वैशाली में लिच्छवियों का गणशासन था। वैशाली के अष्टकुल लिच्छवी थे। किन्तु इतिहासकारों के समक्ष एक प्रश्न उठता रहा है कि “ये लिच्छवी कौन थे? क्या ये विदेह के मूल-निवासी थे अथवा कहीं बाहर से आकर बस गये थे?" ये और ऐसे ही कई प्रश्न हैं, जिनका समाधान होना अभी शेष है। डॉ. विन्सैण्ट ए. स्मिथ की मान्यता है कि लिच्छवी मूलत: तिब्बती थे। डॉ. विद्याभूषण मानते हैं कि लिच्छवि पर्शियन थे। वे अपने मूल निवास स्थान निसिबी' (Nisibi) से निकलकर भारत और तिब्बत में बस गये। डॉ. हौजसन (Hodgson) का मत है कि से सीथियन थे। 'वैजयन्ती कोष' में वर्णन मिलता है कि एक क्षत्रिय-कुमारी का विवाह व्रात्य के साथ हुआ, जो 'लिच्छवी' था। अमरसिंह, हलायुध, हेमचन्द्र आदि के अनुसार वे 'क्षत्रिय' और 'व्रात्य' थे। वोटलिंग (Bothlingk), रोथ (Roth) और मौनियर विलियम्स का अभिमत है कि ये लोग राजवंशी थे। मि. दुल्वा (Dulva) ने सिद्ध किया है कि लिच्छवी क्षत्रिय थे। उन्होंने बौद्ध-ग्रन्थों का एक अवतरण इसकी पुष्टि में दिया है जब मौग्गलायन भिक्षा के लिए वैशाली में प्रविष्ट हुए, उस समय लिच्छवी मगधसम्राट् अजातशत्रु का प्रतिरोध करने के लिए बाहर निकल रहे थे। लिच्छिवियों ने भक्तिपूर्वक उनसे पूछा- "भगवान् ! हमलोग अजातशत्रु के विरुद्ध इस युद्ध में विजयी होंगे या नहीं?" मौग्गलायन ने उत्तर दिया-“हे वशिष्ठगोत्रियो ! तुम्हारी विजय होगी।" इससे सिद्ध होता है कि लिच्छवी क्षत्रिय थे; क्योंकि वशिष्ठगोत्रीय क्षत्रिय होते थे। . दीघनिकाय' के महापरिनिव्वाणसुत्त में आया है कि बुद्ध के निर्वाण होने पर उनके अवशेष प्राप्ति के लिए लिच्छिवियों ने दावा किया और कहा कि हम भी भगवान् की जाति के हैं— . “भगवं पि खत्तिओ, मायं पि खत्तिया।" सम्पूर्ण जैन-दिगम्बर साहित्य में महावीर और उनके पिता तथा माता को क्षत्रिय बताया है। वे ज्ञातवंशी लिच्छवि क्षत्रिय थे। जैन-वाङ्मय के अनुशीलन से यह स्पष्ट ज्ञात होता है कि लिच्छिवी कहीं बाहर से आकर यहाँ नहीं बसे थे, अपितु यहीं के मूल-निवासी थे। 00 64 प्राकृतविद्या-जनवरी-जून '2002 वैशालिक-महावीर-विशेषांक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003216
Book TitlePrakrit Vidya 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2001
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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