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है—'विणीए णाए णायपुत्ते णायकुलचंदे विदेहे विदेहदिण्णे विदेहजच्चे विदेहसूमाले तीसे-वासाइं विदेहंसि कटु।'
- इसीप्रकार ‘आचारांग सूत्र' में उपर्युक्त पाठ से मिलता-जुलता पाठ इसप्रकार मिलता है-“तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे णायपुत्ते णायकुलचदे णायकुल-णिव्वत्ते विदेहे विदेहदिण्णे विदेहजच्चे विदेहसुमाले तीसवासाई विदेहत्ति कटु आगारमज्झे वेसित्ता......" ___ इन अवतरणों से स्पष्ट ज्ञात होता है कि महावीर ज्ञातृकुल में उत्पन्न हुए थे, वे विदेह के रहनेवाले थे, विदेह के दौहित्र थे और उनकी माता त्रिशला 'विदेहदत्ता' कहलाती थीं।
श्वेताम्बर सूत्र-साहित्य में कुण्डग्राम, क्षत्रियकुण्ड, उत्तरक्षत्रियकुण्डपुर, सन्निवेश, कुण्डग्राम नगर, क्षत्रियकुण्डग्राम आदि अनेक नाम उनके जन्म-नगर के मिलते हैं; किन्तु वे सब एक ही नगर के नाम हैं। यहाँ तत्सम्बन्धी कुछ उद्धरण दिये आ रहे हैं। इनसे भगवान् महावीर के जन्म-स्थान के सम्बन्ध में अपना अभिमत निश्चित करने में सहायता मिलेगी :--
'उत्तरखत्तियकुण्डपुरसंणिवेसंमि.......'
–(आचारांग, द्वितीय श्रुतस्कन्ध, भावनाख्य चतुर्विंशतितम अध्ययन) उत्तरखत्तियकुण्डग्गमे णयरे.......'
-(कल्पसूत्र द्वितीय क्षण। संख्या 21, 26, 28, 30, 32) 'उत्तरखत्तियकुण्डपुरसंणिवेसंमि.......' - (आचारांग, 2/24/28) 'ज्ञातमस्तीह भरते महीमण्डलमण्डनम् ।
क्षत्रियकुण्डग्रामाख्यं पुरं मत्पुरसोदरम् ।।'-- (त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित, 10) इन अवतरणों के प्रकाश में उत्तर क्षत्रिय कुण्डपुर' या 'कुण्डग्राम' ही भगवान् की जन्म-नगरी है —यह सुस्पष्ट हो जाता है। यह नगर विदेह में स्थित था, यह हम पहले सिद्ध कर चुके हैं।
. इस नगर की विशेषता बताते हुए हेमचन्द्राचार्य ने जो बातें लिखी हैं, वे विशेष ध्यान देने योग्य हैं- “स्थानं विविधचैत्यानां धर्मस्यैकनिबन्धनम् ।
अन्यायैरपरिस्पृष्टं पवित्रं तच्च साधुभिः ।। मगया-मद्यपानादि-व्यसनास्पृष्टनागरम् । तदेव. भरतक्षेत्रं पावनं तीर्थवद् भुवि ।।" ।
–(त्रिषष्टिशलाकामहापुरुषचरित 103) अर्थ :- यह नगर नानाप्रकार के चैत्यों का स्थान था। धर्म का साधनभूत था। यहाँ अन्यायों का तो स्पर्श भी नहीं था। साधुओं से यह पवित्र था। यहाँ के निवासियों को शिकार, मद्यपान आदि व्यसनों का स्पर्श तक नहीं था। वह नगर वास्तव में भरतक्षेत्र को पवित्र करनेवाला पृथ्वी का मानो तीर्थक्षेत्र ही था।
कुण्डपुर की यह स्तुति कोरी शिष्टाचारपरक सामान्य-प्रशंसा नहीं है। आचार्य ने इसमें
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प्राकृतविद्या जनवरी-जून '2002 वैशालिक-महावीर-विशेषांक
प्राकृताचा
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