SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 61
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पंक्तिरूपी कमलिनियों के समूह से सुशोभित है तथा सुखरूपी जल का मानो कुण्ड ही है। 'उत्तरपुराण' के कर्ता आचार्य गुणभद्र ने इस प्रसंग को इसी भाँति लिखा है “भरतेऽस्मिन् विदेहाख्ये विषये भवनांगणे। राज्ञ: कुण्डपुरेशस्य वसुधारापतत्पृथुः ।।" अर्थ :- भरतक्षेत्र के विदेह' नामक देश सम्बन्धी कुण्डपुर' नगर के राजा सिद्धार्थ के भवन के आँगन में प्रतिदिन रत्नवर्षा हुई। इन उल्लेखों से यह स्पष्ट हो जाता है कि भगवान् का जन्म उस 'कुण्डपुर' नामक नगर में हुआ था, जो 'विदह' देश में स्थित था। 'विदेह' जनपद और उसी सीमायें _ विदेह-जनपद की सीमायें इसप्रकार थीं गण्डकी-तीरमारभ्य चम्पारण्यान्तकं शिवे । विदेहभू: समाख्याता तीरभुक्ताभिधो मनुः ।। –(शक्तिसंगम-तन्त्र, पटल 7) अर्थात् 'गण्डकी' नदी से लेकर 'चम्पारण्य' तक का प्रदेश विदेह' अथवा 'तीरभुक्त' कहलाता है। (तीरभुक्त 'तिरहुत' को कहते हैं)। वृहद् विष्णुपुराण' के मिथिलाखण्ड में विदेह' की पहचान और सीमायें बताते हुए कहा “गंगा-हिमवतोर्मध्ये नदीपञ्चदशान्तरे । तैरभुक्तरिति ख्यातो देश: परमपावनः ।। कौशिकीत: समारभ्य गण्डकीमधिगम्य वै। योजनानि चतुर्विंशत् व्यायाम: परिकीर्तितः ।। गंगाप्रवाहमारभ्य यावद्धैमवतं वनम् । विस्तार: षोडश: प्रोक्तो देशस्य कुलनन्दनः" ।। अर्थ :- गंगा और हिमालय के मध्य में तीरभुक्त' देश है, जिसमें पन्द्रह नदियाँ बहती हैं। पूर्व में कौशिकी (आधुनिक कोसी), पश्चिम में गण्डकी, उत्तर में हिमालय और दक्षिण में गंगा नदी है। यह पूर्व से पश्चिम की ओर 24 योजन है और उत्तर से दक्षिण की ओर 16 योजन है। इसी ‘विदेह' या 'तीरभुक्ति प्रदेश में वैशाली, मिथिला आदि नगर थे। श्वेताम्बर-साहित्य में 'विदेह कुण्डपुर' ____ भगवान् महावीर को कहीं-कहीं वैदेह' भी कहा गया है। कुछ विद्वानों की राय में इसका कारण उनकी माता का कुल है। महावीर की माता त्रिशला विदेह कुल' की थीं। श्वेताम्बरग्रन्थों में इसके सम्बन्ध में अनेक स्थानों पर उल्लेख आये हैं। कल्पसूत्र' (5/11) में कहा ॐ सिन्ध्वाट्यविषये प्राकृतविद्या-जनवरी-जून '2002 वैशालिक-महावीर-विशेषांक 40 59 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003216
Book TitlePrakrit Vidya 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2001
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy