SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 60
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वैशाली-कुण्डग्राम __ _पं. बलभद्र जैन सम्पूर्ण प्राचीन-वाङ्मय इस बात में एकमत है कि भगवान् महावीर विदेह' में स्थित 'कुण्डग्राम' में उत्पन्न हुए थे। उस कुण्डपुर की स्थिति स्पष्ट करने के लिए विदेह कुण्डपुर' अथवा 'विदेह'-जनपद-स्थित ‘कुण्डपुर' नाम दिया है। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि प्राचीनकाल में 'कुण्डपुर' या इससे मिलते-जुलते नामवाले नगर एक से अधिक होंगे; अत: भ्रम-निवारण और कुण्डपुर की सही स्थिति बताने के लिए कुण्डपुर के साथ विदेह' पद लगाना पड़ा। आचार्य पूज्यपाद-विरचित संस्कृत निर्वाण-भक्ति' में भगवान् के जन्म-सम्बन्धी सभी आवश्यक बातों पर प्रकाश डालते हुए कहा है “सिद्धार्थनृपति-तनयो भारतवास्ये विदेहकुण्डपुरे। देव्यां प्रियकारिण्यां सुस्वप्नान्संप्रदर्श्य विभुः ।।" अर्थ :- सिद्धार्थ राजा के पुत्र (महावीर) को भारतदेश के विदेह कुण्डपुर' में सुन्दर (सोलह) स्वप्न देखकर देवी प्रियकारिणी (त्रिशला) ने चैत्र-शुक्ल-त्रयोदशी को उत्तरा-फाल्गुनि' नक्षत्र में अपने उच्चस्थानवाले सौम्य-ग्रह और शुभलग्न में जन्म दिया और चतुर्दशी को पूर्वाह्न में इन्द्रों में रत्नघटों से भगवान् का अभिषेक किया। - हरिवंशपुराण' में कुण्डपुर' की स्थिति को कुछ अधिक विस्तार के साथ दिया है। वह इसप्रकार है— “अथ देशोऽस्ति विस्तारी जम्बूद्वीपस्य भारते। विदेह इति विख्यात: स्वर्गखण्डसम श्रिया।। किं तत्र वर्ण्यते यत्र स्वयं क्षत्रियनायका: । इक्ष्वाकव: सुखक्षेत्रे संभवन्ति दिवश्च्युता: ।।। तत्राखण्डल-नेत्राली पद्मिनीखण्ड-मण्डनम् । सुखाम्भ:कुण्डमाभाति नाम्ना कुण्डपुरं पुरम् ।।" --(2/1, 4, 5) अर्थ :- इस जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में लक्ष्मी से स्वर्गखण्ड की तुलना करनेवाला 'विदेह' नाम से प्रसिद्ध एक विस्तृत देश है। उस देश का क्या वर्णन किया जाये, जहाँ के सुखदायी-क्षेत्र में क्षत्रियों के नायक स्वयं इक्ष्वाकुवंशी राजा स्वर्ग से च्युत हो उत्पन्न होते हैं। उस विदेह देश में 'कुण्डपुर' नाम का एक ऐसा सुन्दर नगर है, जो इन्द्र के नेत्रों की 00 58 Jain Education International प्राकृतविद्या-जनवरी-जून '2002 वैशालिक-महावीर-विशेषांक प्राकृतावधान For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003216
Book TitlePrakrit Vidya 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2001
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy