SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 42
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तुलना में वैशाली की महत्ता अधिक थी। वैशाली की पहचान निर्विवादरूप से वर्तमान वैशाली जिले के 'बसाढ़' क्षेत्र से की गई है। महावीर की माता त्रिशला को 'विदेहदत्ता' (आचारांगसूत्र, पत्र 389) और महावीर को 'विदेहदत्ता' पुत्र होने के कारण वैदेहदत्त' भी कहा गया। त्रिशला विदेह देश' की नगरी वैशाली के गणप्रधान चेटक की बहन थी (आवश्यक चूर्णि, पूर्वभाग, पत्र 245)। निरयावलियों के अनुसार चेटक वैशाली का अधिपति था ओर उसके नौ मल्ल गणराजा और नौ लिच्छवि गणराजा परामर्शी थे। मल्ल जाति काशी में और लिच्छवि कोशल में स्थित थे और इनके सम्मिलित गणतन्त्र की राजधानी वैशाली थी, जिसका अधिपति चेटक था। उपर्युक्त तथ्यों के आधार पर इतना तो निश्चितरूप से कहा जा सकता है कि भगवान महावीर का प्राचीन 'अंग' (जिसमें वर्तमान लछुआड़ का क्षेत्र आता है) अथवा 'मगध' (जिसके अन्तर्गत वर्तमान नालन्दा के समीपस्थ कुण्डलपुर का क्षेत्र आता है) के राजकुलों से जन्म का कोई सम्बन्ध नहीं था। विदेह' गंगा के उत्तर में स्थित है, जबकि लछुआड़' का क्षत्रियकुण्ड गंगा के दक्षिण में स्थित है और यह प्रदेश भगवान् महावीर के काल में 'अंग' महाजनपद का हिस्सा था। कहीं और किसी भी साहित्य में लछुआड़-क्षत्रियकुण्ड क्षेत्र को भी विदेह' का हिस्सा नहीं बताया गया है। प्राचीन जैन-साहित्य में 'क्षत्रियकुण्ड' (वह स्थान जो भगवान् महावीर की जन्मभूमि है) को वैशाली के समीप बताया गया है, जबकि लछुआड़-क्षत्रियकुण्ड के समीप 'वैशाली' नामक (छोटा या बड़ा) कोई स्थान नहीं है। लछुआड़-क्षत्रियकुण्ड को भगवान् महावीर का जन्मस्थान माननेवाले वहाँ स्थित नाले को नदी (गण्डक) बताते हैं। नदी और नाले में स्पष्टतया भेद किया जा सकता है, जबकि 'गण्डक नदी' वर्तमान 'वैशाली' जिले से होकर आज भी बहती प्रव्रज्या के पश्चात् महावीर ने जिन स्थानों पर वास किया, उनकी भौगोलिक स्थिति पर विचार करने से यह स्पष्ट हो जाता है, वे सभी वैशाली के आसपास थे। दीक्षा लेने के दूसरे दिन महावीर ने कोल्लाक सन्निवेश' में पारणा की। जैनसूत्रों में दो कोल्लाक-सन्निवेशों का उल्लेख है- एक 'बनियाग्राम' के समीप और दूसरा राजगृह' के समीप । लछुआड़' के समीप अथवा 'अंग' में किसी कोल्लाक-सन्निवेश के होने की चर्चा नहीं है और लछुआड़ से दोनों में से किसी कोल्लाक-सन्निवेश पर एक दिन में पैदल पहुँचना सम्भव नहीं है। नालन्दा के समीप स्थित कुण्डलपुर से राजगृह का समीपस्थ कोल्लाक-सन्निवेश भी लगभग चालीस मील की दूरी पर स्थित है। वहाँ से एक दिन में चालीस मील की दूरी तय करना, वह भी विश्राम-हेतु, युक्तिसंगत प्रतीत नहीं होता। अत: भगवान् महावीर को वर्तमान वैशाली का वासी मानना ही उचिंत होगा; क्योंक वहाँ से कोल्लाक-सन्निवेश अत्यन्त समीप है। प्राचीन जैन-साहित्य में क्षत्रियकुण्ड के साथ किसी पर्वत अथवा पहाड़ी का जिक्र नहीं 0040 प्राकृतविद्या-जनवरी-जून '2002 वैशालिक-महावीर-विशेषांक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003216
Book TitlePrakrit Vidya 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2001
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy