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________________ वैशाली: जन्मभूमि महावीर की भारतीय पुरातत्त्व के प्रारम्भिक चरण को यदि 'बौद्ध - पुरातत्त्व' की संज्ञा दी जाये, तो अतिशयोक्ति नहीं होगी, फलत: बौद्धधर्म के प्रवर्तक गौतम बुद्ध के जन्म से परिनिर्वाण तक की घटनाओं के स्थान पर कोई संशय अथवा बहस की गुंजाइश नहीं रहेगी। परवर्ती दौर में जब पुरातत्त्व की दिशा परिवर्तित हुई, तब वह ब्राह्मण-धर्म की ओर मुड़ी, और इस दिशा में भी काफी पुरातात्त्विक कार्य हुए। परन्तु जैनधर्म पुरातत्त्ववेत्ताओं के लिए अछूता बना रहा और इस दिशा में कोई ठोस कार्य न होने के कारण जैनधर्म के प्रवर्त्तक वर्द्धमान महावीर के जन्मस्थल के निर्धारण के सम्बन्ध में विवाद बना हुआ है । साहित्य से स्पष्ट परावर्तन के बावजूद इतिहासकार तथ्यों की अनदेखी करते हुए अलग-अलग स्थानों को महावीर की जन्मस्थली बताते हैं और भ्रम की स्थिति बनाये रखना चाहते हैं । जैसे— दिगम्बर सम्प्रदाय से अभिप्रेरित विद्वान् ‘नालन्दा' के समीप स्थित 'कुण्डलपुर' को भगवान् महावीर के जन्मस्थान होने के पक्ष में तर्क देते हैं, जब कि श्वेताम्बर - पन्थ से प्रभावित लोग वर्तमान 'जमुई' जिले के 'लछुआ - क्षत्रियकुण्ड' को महावीर का जन्मस्थान बताते हुए उसका पक्ष रखते हैं । जैनधर्म के सम्प्रदायवाद से अभिप्रेरित हुए बगैर इससे ऊपर उठकर साहित्य में वर्णित भगवान् महावीर के प्रारम्भिक जीवन से सम्बन्धित तथ्यों का यदि सूक्ष्म-विवेचन ईमानदारी - पूर्वक किया जाये, तो हम 'वैशाली' के समीप स्थित 'कुण्डग्राम' को भगवान् महावीर का जन्मस्थान पाते हैं । भगवान् महावीर के जन्मस्थान के निर्धारण के सम्बन्ध में निम्नांकित साहित्यिक उल्लेख, पुरातात्त्विक संकेत और पूर्व विद्वानों के कथन विचारणीय हैं :― भगवान् महावीर के विभिन्न नामों में वैदेह, वैदेहदत्ता, विदेहजात्य, विदेहसुकुमाल का उल्लेख जैनग्रन्थों (आचारांगसूत्र, पत्र 389 ) में आता है। साथ ही उनके लिए वैसालिय (वैशालिक ) विशेषण भी व्यवहृत हुआ है (सूत्रकृतांग, शीलांकाचार्य-कृत टीकासहित, अध्याय 2, उद्दे. 3)। इन विशेषणों से यह परिलक्षित होता है कि महावीर के काल में 'वैशाली' वृहत्तर 'विदेह' की एक प्रमुख नगरी थी और इससे उनका गहरा सम्बन्ध था । भगवान् महावीर के चातुर्मासों में से उन्नीस 'विदेह' में व्यतीत हुए और उनमें बारह 'वैशाली' में, छ: 'मिथिला' में और एक 'अस्थिकग्राम' में बीता। इससे भी यह प्रकट होता है कि उस समय मिथिला की प्राकृतविद्या जनवरी - जून 2002 वैशालिक - महावीर - विशेषांक - डॉ. अरविन्द महाजन Jain Education International For Private & Personal Use Only 39 www.jainelibrary.org
SR No.003216
Book TitlePrakrit Vidya 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2001
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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