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________________ इनमें से 'तीरभुक्ति' या तिरहुत' आज भी प्रसिद्ध है, इसी नाम से प्रमण्डल भी बना हुआ है। विदेह की सीमा के सूचक वृहद् विष्णुपुराण' के मूलपद्य इसप्रकार हैं "गंगा-हिमवतोर्मध्ये नदी पंचदशान्तरे। तैरभुक्तिरिति ख्यातो देश: परमपावन: ।। कौशिकी तु समारभ्य गण्डकीमधिगम्य वै। योजनानि चतुर्विंशत् व्यायाम: परिकीर्तित:।। गंगाप्रवाहमारभ्य यावद्धैमवतं वनम् । विस्तार: षोडश: प्रोक्तो देशस्य कुलनन्दनः।। मिथिला नाम नगरी तत्रास्ते लोकविश्रुत:। पंचभि: कारणैः पुण्या विख्याता जगतीत्रये ।।" -(वहविष्णुपुराण, मिथिलामाहात्म्य, 2/5, 10-12) अर्थात् गंगा नदी और हिमालय पर्वत के मध्य पन्द्रह नदियों वाला परमपवित्र तीरभुक्ति (विदेह) नामक देश है। कौशिकी (कोशी) से लेकर गण्डकी (गण्डक) तक विदेह की पूर्व से पश्चिम तक की सीमा 24 योजन (96 कोस) है। गंगा नदी से लेकर हैमवत वन (हिमालय) तक चौड़ाई 16 योजन (64 कोस) है। ऐसे विदेह अथवा तीरभक्ति देश में तीनों लोकों के विख्यात पाँच कारणों से पुण्यशाली 'मिथिला' नाम की नगरी है। सम्राट अकबर द्वारा महामहोपाध्याय मिथिलेश पंडित महेश ठाकुर के दान-पत्र में भी मिथिला की यह सीमा गंगा से हिमालय तथा कोशी और गण्डकी नदी के बीच बताई गई है। मूल उद्धरण इसप्रकार है-“अज गंग ता संग अज कोसी ता गोसी।" –(पं. के. भुजबली शास्त्री, जैन सिद्धांत भास्कर, 10/2, पृ. 62, सन् 1943) आचार्य विजयेन्द्र सूरि ने वैशाली' नामक अपनी पुस्तक में उक्त उद्धरण दिया है, जिससे स्पष्ट होता है कि विदेह-देश गंगा-नदी से उत्तर-दिशा में था—"गंगाया उत्तरत: विदेहदेश: । देशोऽयं वेदोपनिषत्पुराणमीयमानानां जनकानां राज्यम् । अस्यैव नामान्तरं मिथिला राज्यस्य राजधान्यपि मिथिलैव नामधेयं बभव।" --(भारत-भूगोल, पृ. 37) इनके अतिरिक्त प्रो. उपेन्द्र ठाकुर, प्रो. कृष्णकान्त मिश्र, भवानी शंकर त्रिवेदी, डॉ. देव सहाय त्रिवेद, डॉ. सावित्री सक्सेना आदि विद्वानों ने भी विदेह की उक्त सीमा को ही मान्य किया है। यहाँ यह ध्यातव्य है वर्तमान 'बिहार' केवल प्राचीन 'विदेह' का पर्याय नहीं है, बल्कि, अंग, मगध और विदेह, तीनों का संयुक्तरूप है। इनमें मगध और विदेह की विभाजक-नदी गंगा नदी, अंग और मगध की विभाजक चम्पा नदी तथा अंग और विदेह की विभाजक कोशी नदी थी और इनकी भौगोलिक स्थित प्राय: आज भी वैसी ही है। इसलिये प्राकृतविद्या-जनवरी-जून '2002 वैशालिक-महावीर-विशेषांक 00 37 www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.003216
Book TitlePrakrit Vidya 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2001
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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