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जिसके पूर्व और पश्चिम में ये दोनों जनपद बसे हुए थे। 'अंग' जनपद की पूर्वी सीमा राजमहल की पहाड़ियाँ उत्तरी सीमा कोसी नदी और दक्षिण में उसका समुद्र तक विस्तार था।" ---(आदिपुराण में प्रतिपादित भारत, पृ. 44-45) अत: अंग-देश का विस्तार पूर्व में राजमहल की पहाड़ियों तक, पश्चिम में चम्पा नदी तक, उत्तर में कोसी नदी तक और दक्षिण में समुद्र तक था।
प्राचीनकाल में मगध देश गंगा नदी के दक्षिण में वाराणसी से मुंगेर तक फैला हुआ था, इसकी दक्षिणी सीमा दामोदर (दमूद) नदी के उद्गम-स्थान कर्णसुवर्ण (सिंहभूम) तक मानी जाती थी। बौद्धकाल में मगध की सीमा पूर्व में चम्पा नदी, पश्चिम में शोण (सोन) नदी, उत्तर में गंगा नदी और दक्षिण में विन्ध्य पर्वतमाला थी।
-(डिक्शनरी ऑफ पालि-प्रोपर नेम्स, भाग 2, पृ. 403 एवं प्राङ् मौर्य बिहार, पृ. 78) मगधदेश के सीमा विस्तार के सम्बन्ध में 'शक्ति संगम तन्त्र' में इसप्रकार कहा है___ कालेश्वरं समारभ्य तप्तकुण्डान्तकं शिवे।
मगधाख्यो कालेश्वर-कालभैरव-नहि दुष्यति ।। 3-7-10 अर्थात् कालेश्वर-कालभैरव-वाराणसी से लेकर तप्तकुण्ड-सीता-कुण्ड-मुंगेर तक 'मगध' नामक महादेश माना गया है।
हुयान्-त्संग के अनुसार, मगध जनपद की मण्डलाकार परिधि 833 मील थी। इसके उत्तर में गंगा नदी, पश्चिम में वाराणसी, पूर्व में हिरण्य-पर्वत और दक्षिण में सिंहभूमि वर्तमान थी। 'ऋग्वेद' और 'महाभारत' में मगध को 'कीकट' कहा गया है। ‘शक्ति संगम' के अनुसार मगध के दक्षिण में कीकट देश था।
विदेहदेश के विस्तार के सम्बन्ध में शक्ति संगम तन्त्र' के 'सुन्दरी खण्ड' में इसप्रकार कहा गया है- गण्डकीतीरमारभ्य चम्पारण्यान्तकं शिवे ।
विदेहभू: समाख्याता तैरभुक्त्यभिया तु सा।। अर्थात् तीरभक्ति कही जानेवाली विदेहभूमि गण्डकी (गण्डक नदी) के तीर से लेकर चम्पारण की अन्तिम-सीमा तक फली हुई है।
'शक्ति-संगम-तन्त्र' के ही प्रसंग से बिहार थ्रो द एजेज' पृ. 55 पर लिखा है— 'फ्रॉम द बैन्क ऑफ गण्डक टू द फॉरेस्ट ऑफ चम्पारण न कन्ट्री वाज कॉल्ड, विदेह और तीरभुक्ति, इट वाज बाउन्डेड ऑन इस्ट, वैस्ट एण्ड साउथ बाई थ्री बिग रिवर्स, द कोसी, गण्डक एण्ड गंगाज, वाइल द तराई रीजन्स फॉर्मड् इट्स नॉर्दर्न, बाउण्डरी”, अर्थात् गण्डक नदी के तट से लेकरं चम्पारण-पर्यन्त का स्थान विदेह' अथवा 'तीरभुक्ति' कहा जाता था। उसके पूर्व, पश्चिम और दक्षिण में कोसी, गण्डक तथा गंगा —ये तीन बड़ी नदियाँ हैं और हिमालय का तराई-क्षेत्र इसके उत्तर की ओर है।
'वृहद् विष्णुपुराण' में विदेह के तीरभुक्ति तथा मिथिला आदि बारह नाम कहे गये हैं।
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प्राकृतविद्या-जनवरी-जून '2002 वैशालिक-महावीर-विशेषांक 'For Private & Personal use only
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