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________________ भी लिछुआड़ को भगवान् महावीर का जन्मस्थान नहीं मानते । यहाँ दो विशिष्ट विद्वानों के मन्तव्य उन्हीं के शब्दों में प्रस्तुत किये जा रहे हैं श्वेताम्बर-विद्वान् पुरातत्त्ववेत्ता पं. कल्याणविजय गणि का अभिप्राय इसप्रकार है“प्रचलित परम्परानुसार आजकल भगवान् की जन्मभूमि पूर्व बिहार में 'क्यूल' स्टेशन से पश्चिम की ओर आठ कोस पर अवस्थित 'लच्छ-आड़' गाँव माना जाता है, पर हम इसको ठीक नहीं समझते। इसके अनेक कारण हैं :– 1. . सूत्रों में महावीर के लिये “ विदेहे विदेहदिन्ने विदेहजच्चे विदेहसूमाले तीसं वासाई विदेहं-सिकट्टु” इत्यादि जो वर्णन मिलता है, उससे यह स्वत: सिद्ध होता है कि महावीर विदेह देश में अवतीर्ण हुए और वहीं उनका संवर्द्धन हुआ था । यद्यपि टीकाकारों ने इन शब्दों का अर्थ और ही तरह से लगाया है, पर शब्दों से प्रथमोपस्थित विदेह, विदेहदत्त, विदेहजात्य, विदेहसुकुमाल, तीस वर्ष विदेह में (पूरे) करके, इन अर्थवाले शब्दों पर विचार करने से यही ध्वनित होता है कि भगवान् महावीर विदेह जाति के लोगों में उत्तम और कुमाल थे। एक जगह तो महावीर को 'वैशालिक' भी लिखा है। इससे ज्ञात होता है कि आपका जन्मस्थान क्षत्रियकुण्डपुर वैशाली का ही एक विभाग रहा होगा । 2. जबकि भगवान् ने राजगृह और वैशाली आदि में बहुत से वर्षों में चातुर्मास किए थे, तब क्षत्रियकुण्डपुर में एक भी वर्षाकाल नहीं बिताया। यदि क्षत्रियकुण्डपुर जहाँ आज मान जाता है, वहीं होता तो भगवान् के कतिपय वर्षाकाल भी वहाँ अवश्य हुये होते, पर ऐसा नहीं हुआ । वर्षावास तो दूर रहा, दीक्षा लेने के बाद कभी क्षत्रियकुण्डपुर अथवा उसके उद्यान भगवान् के आने-जाने का भी कहीं उल्लेख नहीं है। हाँ, प्रारम्भ में जब आप ब्राह्मणकुण्डपुर के बाहर 'बहुसालचैत्य' में पधारे थे, तब क्षत्रियकुण्डपुर के लोगों को आपकी धर्मसभा आने और जमालि के प्रव्रज्या लेने की बात अवश्य आती है । में भगवान् महावीर बहुधा वहीं अधिक ठहरा करते थे, जहाँ पर राजवंश के मनुष्यों का आपकी तरफ सद्भाव रहता । राजगृह - नालंदा में चौदह और वैशाली - वाणिज्यग्राम में बारह वर्षावास होने का यही कारण था कि वहाँ के राजकर्त्ताओं की आपकी तरफ अनन्यभक्ति थी। क्षत्रियकुण्डपुर के राजपुत्र जमालि ने अपनी जाति के पाँच सौ राजपुत्रों के साथ निर्ग्रन्थ- प्रव्रज्या ली थी। इससे भी इतना तो सिद्ध होता है कि क्षत्रियकुण्डपुर, जहाँ से एक साथ पाँच सौ राजपुत्र निकले थे, कोई बड़ा नगर रहा होगा । तब क्या कारण है कि महावीर ने एक वर्षावास अपने जन्मस्थान में नहीं किया? इसका उत्तर यही है कि क्षत्रियकुण्डपुर वैशाली का ही एक उपनगर था और वैशाली - वाणिज्यग्राम में बारह वर्षा - चातुर्मास हुए ही थे, जिनसे क्षत्रियकुण्ड और ब्राह्मणकुण्ड के निवासियों को भी पर्याप्त लाभ मिल चुका था । इस क्षत्रियकुण्ड में आने अथवा वर्षावास करने सम्बन्धी उल्लेखों का न होना अस्वाभाविक नहीं है । प्राकृतविद्या जनवरी-जून 2002 वैशालिक - महावीर - विशेषांक Jain Education International For Private & Personal Use Only 33 www.jainelibrary.org
SR No.003216
Book TitlePrakrit Vidya 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2001
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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