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________________ (के उत्तरदायित्व) से विनिवृत्त थे, अथवा ज्ञात कुलोत्पन्न थे, देहासक्ति रहित थे, विदेहजनों द्वारा अर्चनीय-पूजनीय थे, विदेहदत्ता (माता) के पुत्र थे, विशिष्ट शरीर वज्रऋषभ नाराच संहनन एवं समचतुरस्र-संस्थान से युक्ते होते हुये भी शरीर से सुकुमार थे । ( इसप्रकार की योग्यता से सम्पन्न ) भगवान् महावीर तीस वर्ष तक विदेहरूप में गृह में निवास करके. । -- (वही, पृ. 377 ) 13. समणे भगवं महावीरे.. ..नायपुत्ते नायकुलचंदे विदेहे विदेहदिन्ने विदेहजच्चे .. कटटु | विदेहसूमाले तीसं वासाइं विदेहंसि.. - ( कल्पसूत्र - सूत्र, श्रमण भगवान् महावीर.. 110, पृ. 160, प्राकृत भारती संस्करण, जयपुर) अर्थ :....ातृवंश के थे, ज्ञातृवंश में चन्द्रमा के समान थे, विदेह थे, विदेहदिन्ना- त्रिशला माता के पुत्र थे, विशिष्ट कान्ति के धारक थे, विशिष्ट देह से अत्यन्त सुकुमार थे । वे तीस वर्ष तक गृहस्थाश्रम में निस्पृह रहकर ... I - ( वही, पृ. 161 ) 14. (क) अरहा णायपुत्ते भगवं वेसालीए वियाहिए । - (सूत्रकृतांग, 1/2/3/22, पृ. 178, ब्यावर सं . ) अर्थ :“इन्द्रादि देवों द्वारा पूजनीय (अर्हन्त ) ज्ञातृपुत्र तथा ऐश्वर्यादि-गुणयुक्त भगवान् वैशालिक महावीर स्वामी ने 'वैशाली' नगरी में कहा था । (ख) “ नायपुत्ते भगवं वेसालिए” “ ज्ञातृपुत्र भगवान् वैशालिक । ” – (महावीर ) चूर्णि "णातकुलप्पसूते सिद्धत्थखत्तियपुत्ते ।” - ( उत्तराध्ययनसूत्र, 6 / 18, पृ. 51, वीरायतन संस्करण, 1972 ) साध्वी चन्दना दर्शनाचार्य ने उक्त संस्करण में उक्त गाथासूत्र के टिप्पण में पृ. 429 पर लिखा है-—“भगवान् महावीर का विशाला (अर्थात् उपनगर - कुण्डग्राम) में जन्म होने से उन्हें वेसालिए या वैशालिक कहा जाता है।” 15. अत्येत्थ भरहवासे, कुण्डग्गामं पुरं गुणसमिद्धं । तत्य य णरिंदवसहो सिद्धत्यो णाम णामेणं । । - (विमलसूरि, पउमचरियं, 221 ) अर्थ :- इसी भरतक्षेत्र में गुण एवं समृद्धि से सम्पन्न 'कुण्डग्राम' नाम का नगर था । वहाँ पर राजाओं में वृषभ के समान उत्तम 'सिद्धार्थ' नामक राजा राज्य करता था । सिद्धत्थराय-पियकारिणीहिं णयरम्मि कुंडले वीरो । उत्तरफग्गुणिरिक्खे चित्तसिया - तेरसीए उप्पण्णो ।। 16. ☐☐ 28 - (आचार्य यतिवृषभ, तिलोयपण्णत्ति, 4/549) अर्थ :- “ भगवान् महावीर कुण्डलपुर में पिता सिद्धार्थ और माता प्रियकारिणी से चैत्र शुक्ल त्रयोदशी के दिन उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में उत्पन्न हुये । Jain Education International प्राकृतविद्या जनवरी - जून 2002 वैशालिक - महावीर - विशेषांक For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003216
Book TitlePrakrit Vidya 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2001
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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