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________________ 17. अह चित्तसुद्धपक्खस्स तेरसीपुव्वरत्तकालम्मि । हत्युत्तराहिं जाओ कुंडग्गामे महावीरो ।। ――――― - ( आवश्यक नियुक्ति, गाथा 304 ) अर्थ :- चैत्रशुक्ल त्रयोदशी को रात्रि के पूर्वभाग में उत्तरहस्ता नक्षत्र में कुंडग्राम में महावीर उत्पन्न हुये। 18. अत्थि इह भरहवासे मज्झिमदेसस्स मण्डणं परमं । सिरिकुण्डगामनयरं वसुमइरमणी तिलयभूयं । । - ( नेमिचन्द्र सूरि, महावीरचरियं) अर्थ इस भारतवर्ष (भरतवर्ष-क्षेत्र) के मध्यदेश का परम - आभूषण और पृथ्वीरूपी रमणी का तिलकभूत श्रीकुण्डग्राम नामक नगर है। 19. कुण्डपुरपुर वरिस्सर सिद्धत्थक्खत्तियस्य णाहकुले । तिसिलाए देवीसदसेवमाणाए । । 28।। देवीए - ( आचार्य वीरसेन, षट्खंडागम (धवला), पु. 9, खण्ड - 4, भाग-1, पृ. 122 ) - (वही, कसायपाहुड (जयधवला ), भाग-1, पृ. 78, गाथा 23 ) अर्थ :- कुंडपुर (कुण्डलपुर ) रूप उत्तमपुर के ईश्वर सिद्धार्थ - क्षत्रिय के नाथ - कुल सैकड़ों देवियों से सेव्यमान त्रिशला देवी के... I 20. आसाढ जण्हपक्खछट्ठीए कुंडलपुरणगराहिव - णाहवंस - सिद्धत्थणरिंदस्स तिसिलादेवीए गब्भमागंतूण तत्थ अट्ठदिवसाहिय णवमासे अच्छिय- चइत्तसुक्कपक्खतेरसीए उत्तराफग्गुणीणक्खते गब्भादो णिक्खंतो । - ( आचार्य वीरसेन, षट्खंडागम (धवला), पु. 9, खण्ड - 4, भाग-1, पृ. 121 ) ."कुंडपुर... .. वड्ढमाणजिणिंदो"..... शेष वही । - ( आचार्य वीरसेन, कसायपाहुड ( जयधवला), भाग-1, पृ. 76-77) अर्थ :- आषाढ़ शुक्लपक्ष की षष्ठी के दिन कुण्डलपुर नगर के अधिपति नाथवंशी सिद्धार्थ नरेन्द्र की त्रिशलादेवी के गर्भ में आकर और वहाँ आठ दिन अधिक नौ मास रहकर चैत्र शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी के दिन उत्तरफाल्गुनी नक्षत्र में गर्भ से बाहर आये।” इह जंबुदीवि भरहंतरालि । रमणीय - विसइ सोहा विसालि । कुंडउरि राउ सिद्धत्य सहित्थु । जो सिरिहरु मग्गण- वेस रहिउ ।। 21. - ( महाकवि पुष्पदंत,, वीरजिणिंदचरिउ, 1/6, पृ. 10 ) अर्थ :इस जम्बूद्धीप के भरतक्षेत्र में विशाल शोभाधारी विदेह प्रदेश में कुण्डपुर नगर के राजा सिद्धार्थ राज्य करते हैं । वे आत्म- हितैषी और श्रीधर होते हुए भी विष्णु के समान वामनावतार-सम्बन्धी याचक- वेष से रहित हैं । —— उक्त शास्त्रीय-उद्धरणों से स्पष्ट है कि भगवान् महावीर का जन्म विदेह- देश के 'कुण्डपुर' (कुण्डलपुर या कुण्डग्राम) में हुआ था, जो आज 'बासोकुण्ड' नाम से जाना जाता प्राकृतविद्या जनवरी-जून 2002 वैशालिक - महावीर - विशेषांक Jain Education International For Private & Personal Use Only 00 29 www.jainelibrary.org
SR No.003216
Book TitlePrakrit Vidya 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2001
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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