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अथेह भारते क्षेत्रे विदेहाभिध ऊर्जित: । देश: सद्धर्मसंघाद्यैः विदेह इव राजते।। इत्यादि वर्णनोपेतदेशस्याभ्यन्तरे पुरम् । राजते कुण्डलाभिख्य.............. ||
-(भट्टारक सकलकीर्ति, वर्धमानचरित, 7/2, प्र. 10) अर्थ :-- इसी भरतक्षेत्र में विदेह नामक शक्तिशाली देश है, जो सद्धर्म और सद्संघ आदि से विदेह की तरह शोभायमान है। इसप्रकार के वर्ण से युक्त देश में कुण्डलपुर' नामक नगर है।
बहु जनपद मीझार तु वीदेह देस रूपडो ए। कुंडलपुर सोहि चंग तु पुरुष नामी जीम ए। ते नयर तणु नाथ तु कासप-गोत्र-धणी ए। सीधारथ भूप जाणंतु हरिवंस सिरोमणि ए। ते भूप तणी पटरांणी तु नाम प्रियकारिणी ए।।
-(महाकवि पद्म, महावीररास, 14/6 10, 16, एवं 21) अथेह भरते क्षेत्रे विदेहविषये शुभे। भूरिपुरादिसंयुक्ते भाति कुण्डपुरं पुरम् ।।
-(मुनि धर्मचन्द्र, गौतमचरित्र, 4/1) अर्थ :- इसी भरतक्षेत्र में एक विदेह देश है जो कि बहुत ही शुभ है और अनेक नगरों से सुशोभित है। उसमें एक कुण्डपुर नाम का नगर है। 11.
अब यह आरजखण्ड महान्, देश सहस बत्तीस प्रमान । तामें दक्षिण-दिस गुणमाल, महा विदेहा देश रसाल ।। सो विदेहवत है समुदाय, सब शोभा ता कही न जाय । कोई तप-फल के परभाय, उपजें वर विदेह में आय।। ताके मध्य नाभिवत् जान, कुण्डलपुर नगरी सुख खान । पुरपति महीपाल मतिमान, श्री सिद्धारथ नाम महान् ।। तिनहिं भवन देवी महा, प्रियकारिणी वरं नार। त्रिशला त्रस-रक्षा-करण, रूप अधिक परताप।।
--- (कवि नवलशाह, वर्धमानपुराण, 7/84, 85, 91, 103, 108, 109) 12. समण भगवं महावीरे णाते णातपुत्ते णायकुलविणिव्वते विदेह विदहदिण्णे विदेहजच्चे विदेहसूमाले तीसं वासाई विदेहे त्ति कटु..... ।
--(आचारांग, 2/15, सूत्र 746, ब्यावर संस्करण) अर्थात् श्रमण भगवान् महावीर, जो कि ज्ञातपुत्र के नाम से प्रसिद्ध हो चुके थे, ज्ञातकुल
प्राकृतविद्या-जनवरी-जून '2002 वैशालिक-महावीर-विशेषांक
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