________________
सदी)। 2. “देश......विदेह इति विख्यात:” (जिनसेन रचित 'हरिवंशपुराण', विक्रम की आठवीं सदी)। 3. “विदेहाख्ये विषये”, “विदेहविषये” (गुणभद्र रचित 'उत्तरपुराण', विक्रम की नवीं सदी)। 4. “अस्मिन् भारते वर्षे विदेहेषु महर्द्धिषु" = “इस भारतवर्ष में महाऋद्धि-सम्पन्न विदेहं जनपद में" (दामनन्दि-कृत 'पुराणसंग्रह:' हस्तलिखित ग्रन्थ)। 5. वर्धमानचरित्र' के लेखक सकलकीर्ति (मृत्यु 1464 ई.) के दो प्रासंगिक श्लोक इसप्रकार हैं (विशेष उपयोगिता के कारण पूर्ण उद्धरण दिये जा रहे हैं) :
अथेह भारते क्षेत्रे विदेहाभिध ऊर्जित-देश: सद्धर्मसंघाद्यैः विदेह इव राजते ।। 2 ।। इत्यादिवर्णनोपेतदेशस्याभ्यन्तरे पुरम्। राजते कुण्डलाभिख्यं.................... | | 10 ।।
अर्थात्, “इस भारतक्षेत्र में विदेह नामक सुन्दर देश, प्रमुख सद्धर्मसंघों के कारण विदेह' के समान चमकता था। वहाँ कुण्डलपुर' नामक नगर, हर प्रकार की प्रशंसा से युक्त देश के अन्तर्गत स्थित हो जगमगा रहा था।"
यहाँ हमने 'विदेह' पर विशेष ध्यान दिया है; क्योंकि यही मूल-मुद्दा है। ऊपर के उद्धरणों से जन्मभूमि के सम्बन्ध में यथानिर्दिष्ट बातें स्पष्ट होती हैं :
(1) कुण्डपुर 'विदेह' में स्थित था। (2) 'विदेह' विख्यात देश था।
(क) इसे कई स्थानों पर स्पष्ट रूप से देश कहा गया है। (ख) जनपदसूचक बहुवचन का प्रयोग किया गया है। जनपद के नाम में बहुवचन होता है। --(पाणिनि : जनपदे लुप्, अध्याय 2) (ग) विदेह पर श्लेष का प्रयोग :
(अ) विदेह (दश), (ब) विदेह (जनक विदेह, विगतो देहो देह-सम्बन्धो यस्य सः=देहातीत अवस्था को प्राप्त)।
प्राचीन जैन-साहित्य में कहीं-कहीं 'विदेह' अथवा 'तीरभृक्ति' के लिए भगवान महावीर अथवा उनके नाना चेटक का प्रसंग आने पर सिन्धुदेश' या सिन्धविषय' शब्द का प्रयोग किया गया है। हमने अपने उपर्युक्त शोधप्रबन्ध में, पृष्ठ 227-28 पर, इसतरह के चार उद्धरण दिये हैं। यह प्रयोग उस समय की प्रचलित-परम्परा के अनुसार ही था। सिन्धु' का एक अर्थ नदी होता है। इसप्रकार 'सिन्धु देश' या सिन्धविषय' का अर्थ हुआ – “नदी के तीर पर स्थित प्रदेश = तीरप्रदेश = तीरभुक्ति । हमारे इस सिन्धुदेश या सिन्धुविषय का, जो तीरभुक्ति' के पर्याय के रूप में प्रयुक्त हुआ है, पश्चिम के 'सिन्धुसौवीर' से कोई सम्बन्ध नहीं है।
अपनी जन्मभूमि से भगवान् महावीर के सम्बन्ध अत्यन्त दृढ़ थे। इस बात की पुष्टि के लिए हम यथानिर्दिष्ट प्रमाण या तर्क उपस्थित करना आवश्यक समझते हैं :1 भगवान् महावीर की माता त्रिशला क्षत्रियाणी विदेहदत्ता' के नाम से प्रख्यात थीं।
। —(कल्पसूत्र', 'आचारांगसूत्र')
0022
प्राकृतविद्या जनवरी-जून '2002 वैशालिक-महावीर-विशेषांक
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org