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________________ जी मुनिराज के अनन्य-भक्त थे, तथा 'आचार्य कुन्दकुन्द स्मृति व्याख्यानमाला' में आपके शौरसेनी प्राकृतभाषा पर महत्त्वपूर्ण-व्याख्यान हुये थे। ___ 'प्राकृतविद्या' परिवार की ओर से दिवंगत-आत्मा को सुगतिगमन, बोधिलाभ एवं शीघ्र निर्वाण-प्राप्ति की मंगलकामना के साथ श्रद्धासुमन समर्पित हैं। –सम्पादक ** अहिंसा और महात्मा गाँधी 26 दिसम्बर 1909 ई. को श्री अर्जुनलाल सेठी, ब्र. शीतल प्रसाद, श्री माणिकचंद पानाचंद मुंबई, श्री हीरालाल नेमचंद सोलापुर, रायबहादुर अण्णासाहेब लठे, ने लाहौर में बोर्डिंग की स्थापना की, जिसमें 24 विद्यार्थी सर्वप्रथम रखे गये। इस बोर्डिंग के सुपरिडेंट लाला लाजपतराय को बनाया गया था, क्योंकि लाला लाजपतराय जैन थे। उस समय के वातावरण में 'अहिंसा से देश आजाद नहीं होगा' --- ऐसा चिंतन बढ़ रहा था। अत: लाला लाजपतराय जी ने यह पत्र गाँधी जी को लिखवाया। जिसके उत्तरस्वरूप महात्मा गाँधी जी ने यह पत्र लाला लाजपतराय जी को लिखा था। -सम्पादक Mahatma Gandhi says : "With due deference to Lalaji, I must join this issue with him when he says that the elevation of the doctrine of Ahimsa to the highest position contributed to the downfall of India. There seems to be no historical warrant for the belief that an exaggerated practice of Ahimsa synchronised with our becoming bereft of manly virtues. During the past 1500 years, we have, as a nation, given ample proof of physical courage but we have been torn by internal dissensions and have been dominated by love of self instead of love of country. We have, that is to say, been swayed away by the spirit of irreligion rather than religion. __ . लाला लाजपतराय (लाहौर) जैनधर्म में जन्म लेकर भी अहिंसा परमधर्म के महात्म्य को समझ नहीं पाए परन्तु महात्मा गाँधी ने समझाते हुये लिखा है कि—यद्यपि मैं लाला जी का बहुत आदर करता हूँ, फिर भी, मैं उनके इस मत से सहमत नहीं कि अहिंसा-सिद्धान्त के चरम विकास के कारण ही भारत का अध:पतन हुआ है। ऐसे कोई ऐतिहासिक तथ्य हमारे सामने नहीं आये हैं, जिनसे यह विश्वास किया जा सके कि अहिंसा की पराकाष्ठा से ही हमारे मानवीय गुणों का घात-प्रतिघात हुआ है। पिछले लगभग 1500 वर्षों में भारत-राष्ट्र ने शौर्य-वीर्य सम्बन्धी अनेक प्रेरक उदाहरण प्रस्तुत किये हैं, फिर भी, यदि हम टूटे हैं, तो केवल अपनी अन्तर्कलहों के कारण ही। स्वराष्ट्र के प्रति समर्पित प्रेम करने के बदले पारस्परिक स्वार्थो के कारण ही हमारा अध:पतन हुआ है। हम तो यहाँ तक भी कह सकते हैं कि नैतिक/धार्मिक वृत्ति की अपेक्षा अनैतिक/अधार्मिक वृत्तियों के कारण ही हमारा अध:पतन हुआ है। -(यथार्थ प्रकाश, पृष्ठ 56).. 00 202 प्राकृतविद्या-जनवरी-जून '2002 वैशालिक-महावीर-विशेषांक For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.003216
Book TitlePrakrit Vidya 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2001
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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