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________________ की। पुण्णसवकहकोसु में 13 सन्धियाँ एवं 250 कडवक हैं। वर्ण्य विषय के अतिरिक्त भी यह ग्रन्थ सन्धिकालीन अपभ्रंश-भाषा की दृष्टि से जितना महत्त्वपूर्ण है, उससे भी अधिक महत्त्वपूर्ण है समकालीन श्रमण संस्कृति, भारतीय इतिहास एवं मध्यकालीन वैदेशिक व्यापार तथा आयात-निर्यात की दृष्टि से भी। __ इसका प्रथम बार सम्पादन राष्ट्रपति सहस्राब्दी पुरस्कार' से सम्मानित तथा प्राच्य पाण्डुलिपियों के मर्मज्ञ और अनेक ग्रन्थों के लेखक प्रो. डॉ. राजाराम जैन आरा (बिहार) ने किया है। उनके लगभग 20 वर्षों के अथक परिश्रम का ही सुपरिणाम है उक्त ग्रन्थ का सम्पादन-प्रकाशन । इसका नयनाभिराम प्रकाशन परमपूज्य आचार्यश्री विद्यासागर जी की प्रेरणा तथा ब्र. शान्तिकुमार जी के सार्थक प्रयत्न से उनके परमभक्त श्रीमान् लाला शिखरचन्द्र जी जैन दिल्ली द्वारा जैन साहित्य, संस्कृति संरक्षण समिति दिल्ली द्वारा किया गया। ___ इस महनीय ग्रन्थ की सर्वत्र चर्चा हो रही है। इसका मूल्यांकन भी जयपुर की अपभ्रंश अकादमी ने इसी वर्ष किया है तथा उसने उसे सन् 2001 के महावीर पुरस्कार से पुरस्कृत एवं सम्मानित किया है। इस पुरस्कार में भी रुपये 21,000/- नकद तथा शाल, श्रीफल एवं मुक्ताहार द्वारा उसके सम्पादक का सार्वजनिक सम्मान किया गया है। उक्त दोनों साहित्यकारों का सम्मान 27 अप्रैल 2002 के दोपहर में श्रीमहावीरजी (जयपुर) के गम्भीर नदी के तट पर वार्षिक मेले के शुभावसर पर पूज्यचरण मुनिराज क्षमासागर जी के सान्निध्य में लगभग 50,000 नर-नारियों के मध्य किया गया। प्रारम्भ में दोनों साहित्यकारों का परिचय प्रो. डॉ. कमलचन्द्र जी सोगानी ने दिया तथा शाल तथा प्रशस्ति-पत्र वहाँ के जिलाधिकारी महोदय ने तथा पुरस्कार राशि एवं मुक्ताहार महावीर तीर्थ कमेटी के अध्यक्ष श्री एन.के. सेठी (भूतपूर्व-आई.ए.एस.) महोदय ने समिति के अन्य वरिष्ठ सदस्यों के साथ प्रदान कर सम्मानित किया। -राजीव जैन ** भंवरलाल जी नाहटा दिवंगत लब्धप्रतिष्ठ-पुरातत्त्ववेत्ता, बहुभाषाविद्, प्राचीनलिपि-विशेषज्ञ, जैनदर्शन-मनीषी. साहित्य-वाचस्पति श्री भंवरलाल जी नाहटा कोलकातावालों का दिनांक 11 फरवरी 2002 को देहावसान हो गया। 'प्राकृतविद्या' परिवार की ओर से दिवंगत आत्मा को सुगतिगमन, बोधिलाभ एवं शीघ निर्वाण-प्राप्ति की मंगलकामना के साथ श्रद्धासुमन समर्पित हैं। –सम्पादक ** प्रो. लक्ष्मीनारायण तिवारी नहीं रहे श्रमण संस्कृति के विशेषज्ञ, प्राच्यभारतीय भाषाओं के गहन-अनुसंधाता विद्वद्वरेण्य प्रो. लक्ष्मीनारायण जी तिवारी (कृतकार्य प्रोफेसर सम्पूर्णानन्द विश्वविद्यालय, वाराणसी) का रविवार दिनांक 10 मार्च 2002 को देहावसान हो गया है। आप पूज्य आचार्यश्री विद्यानन्द 00201 प्राकृतविद्या-जनवरी-जून '2002 वैशालिक-महावीर-विशेषांक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003216
Book TitlePrakrit Vidya 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2001
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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