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________________ पुरस्कार ग्रहण करती हुई प्रो. (डॉ.) विद्यावती जैन पुरस्कार ग्रहण करते हुये प्रो. (डॉ.) राजाराम जैन श्रृंखला में अभी हाल में अपभ्रंश के अद्यावधि अप्रकाशित दो ग्रन्थ प्रकाशित हुए हैं--. पज्जुण्णचरिउ एवं पुण्णासवकहको । पज्जुण्णचरिउ तेरहवीं सदी का एक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ हैं, जिसके लेखक हैं महाकवि सिंह । मूलत: यह ग्रन्थ महाकवि सिद्ध द्वारा लिखा गया था; किन्तु चूहों एवं दीमक ने उसका अधिकांश भाग नष्ट कर दिया था । तब अपने गुरु के आदेश से महाकवि सिंह ने उसका पूर्ण उद्धार किया; अत: आगे चलकर वह उन्हीं के नाम से प्रसिद्ध हो गया । इसकी विस्तृत रोचक चर्चा उक्त ग्रन्थ की समीक्षात्मक प्रस्तावना में की गई है । वह अपभ्रंश भाषा का एक आलंकारिक महाकाव्य है, जिसकी 13 सन्धियों में ऐतिहासिक प्रशस्ति के अतिरिक्त कुल मिलाकर 308 कडवक हैं । रचना प्रौढ़ है, किन्तु बड़ी ही सरस एवं रोचक | इसकी प्रकाशक संस्था -- भारतीय ज्ञानपीठ, नई दिल्ली ने इसे "ज्ञानपीठ का गौरव-: - ग्रन्थ " कहा है I इसका सम्पादन वीर कुँवरसिंह विश्वविद्यालय सेवान्तर्गत म. म. महिला कॉलेज आरा की प्रोफेसर एवं हिन्दी - विभाग की अध्यक्ष तथा अनेक पाण्डुलिपियों की सम्पादिका और अनेक ग्रन्थों की यशस्वी लेखिका प्रो. डॉ. विद्यावती जैन आरा (बिहार) ने किया है। उन्हें इस पाण्डुलिपि की प्रतिलिपि सन् 1972 में पं. हीरालाल जी सिद्धान्ताचार्य के सौजन्य से ब्यावर (राजस्थान) के प्राच्य शास्त्र - भण्डार से उपलब्ध हुई थी । श्रीमती डॉ. जैन को पाण्डुलिपि के सम्पादन में लगभग 25 वर्ष लगे, किन्तु उनके इस दीर्घकालीन कठोर परिश्रम से प्राच्यविद्या जगत् को एक अमूल्य ग्रन्थरत्न उपलब्ध हो सका, यह विशेष प्रमोद का विषय है, जिसके लिये प्राच्यविद्याजगत उनका सदा आभारी रहेगा। इस ग्रन्थरत्न का मूल्यांकन कर अपभ्रंश अकादमी जयपुर ने उसे स्वयम्भू पुरस्कार पुरस्कृत किया है, जिसमें 21,000/- रुपयों की नकद राशि, शाल, श्रीफल एवं मुक्ताहार द्वारा साहित्यकार को सार्वजनिक रूप में सम्मानित किया जाता है। से दूसरा प्रकाशित अपभ्रंश ग्रन्थ है— पुण्णासवकहकोसु । प्रस्तुत ग्रन्थ के मूललेखक हैं महाकवि रइधू, जिन्होंने अपभ्रंश, प्राकृत एवं प्राचीन हिन्दी में लगभग 30 ग्रन्थों की रचना 200 Jain Education International प्राकृतविद्या जनवरी-जून 2002 वैशालिक - महावीर - विशेषांक For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003216
Book TitlePrakrit Vidya 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2001
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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