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________________ 'भास्कर', नागपुर। 5. आचार्य मुनि श्री वर्द्धमानसागर स्मृति श्रुत संवर्द्धन पुरस्कार-2001 : डॉ. (श्रीमती) नीलम जैन, गाजियाबाद। 6. सराक पुरस्कार-2001 : श्री कमलकुमार जैन, साढम (बोकारो) प्रथम 5 पुरस्कारों के अन्तर्गत प्रत्येक को 31,000 की नगद राशि एवं छठे पुरस्कार के अन्तर्गत 25,000 की नगद राशि के अतिरिक्त शॉल, श्रीफल, प्रशस्ति एवं प्रतीक चिन्ह समर्पित किये जाते हैं। __इन पुरस्कारों का समर्पण-समारोह पूज्य उपाध्याय श्री ज्ञानसागर जी महाराज के ससंघ मंगल सान्निध्य में राजस्थान की प्रसिद्ध नगरी केकड़ी में 26 मई 2002 को मध्यान्ह 1.00 बजे केन्द्रीय वस्त्र राज्य मंत्री श्री वी. धनंजय कुमार के मुख्य आतिथ्य में सम्पन्न होगा। डॉ. अनुपम जैन ** महत्त्वपूर्ण सूचना सभी को सूचित करते हुये हर्ष है कि रेल मंत्रालय, भारत सरकार के सहयोग से 16 अप्रैल 2002 से तीर्थराज श्री सम्मेदशिखर जी के स्टेशन 'पारसनाथ' पर 'पूर्वा एक्सप्रेस' (अप तथा डाउन) में रुकना प्रारम्भ हो गयी है तथा इसके रिजर्वेशन भी स्वीकार किये जा रहे हैं। तीर्थयात्रियों से अनुरोध है कि इस सुविधा से अधिक से अधिक लाभ उठायें। गाड़ी नं. स्टेशन दिन समय स्टेशन समय 2382 नई दिल्ली सोम, मंगल, शुक्र 16:15 पारसनाथ 10:38 2381 पारसनाथ बुध, गुरु, रवि 13:48 नई दिल्ली 08:10 . विशेष— पूर्वा एक्सप्रेस, अलीगढ़, टूण्डला, इटावा, कानुपर, इलाहाबाद, मुगलसराय, गया स्टेशनों पर ठहरती है। ___-विजय जैन ** अपभ्रंश के सद्य:प्रकाशित दो ग्रन्थ पुरस्कृत प्राकृत एवं आधुनिक भारतीय भाषाओं के मध्य की एक प्रमुख जीवन्त कड़ी होने के कारण भारतीय भाषा-विज्ञान के शास्त्रीय अध्ययन की दृष्टि से अपभ्रंश-भाषा का विशेष महत्त्व है। इसमें तीसरी-चौथी सदी से ही प्रचुर मात्रा में साहित्य का प्रणयन होता रहा। यद्यपि उसकी अनेक पाण्डुलिपियाँ लुप्त-विलुप्त हो गईं, फिर भी जो पाण्डुलिपियाँ वर्तमान में उपलब्ध हैं, उनमें से कुछ तो देश-विदेश के प्राच्य शास्त्र भाण्डारों में सुरक्षित हैं और कुछ अभी भी प्रच्छन्नावस्था में मध्यकालीन इतिहास एवं श्रमण संस्कृति की विश्रृंखलित कड़ियों को अपने अन्तर्तम में संजोए हुए अपने-अपने भाग्य-भरोसे उद्धार के लिये व्याकुल हैं। पाण्डुलिपियों की खोज एवं उनका सम्पादनादि कार्य बहुत जटिल एवं दुरूह होने के कारण नई पीढ़ी के शोधेच्छु विद्वान् इस क्षेत्र में आने का साहस नहीं जुटा पाते। यही कारण है कि अपभ्रंश-साहित्य की सैकड़ों पाण्डुलिपियाँ उपलब्ध होते हुए भी अभी तक अंगुलियों पर गिनी जाने योग्य पाण्डुलिपियों का ही सम्पादन-प्रकाशन हो सका है। प्रकाशनों की इसी प्राकृतविद्या-जनवरी-जून '2002 वैशालिक-महावीर-विशेषांक 00 199 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003216
Book TitlePrakrit Vidya 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2001
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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