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________________ अशोक की विचारधाराओं पर जैनत्व के संस्कारों का स्पष्ट द्योतक है। आसव अशोक के दसवें चट्टानलेख में उल्लेख है "देवानंपियदसि राजा तं सवं पारत्रिकाय किंति सकले अपपरिस्रवे अस। एस तु परिसवे य अपुंजं।" __"देवताओं का प्रिय प्रियदर्शी राजा जो कुछ उद्योग करता है, वे सब परलोक के लिए है, जिससे प्रजा को कम से कम परिसव मिले। यह जो अपुण्य है, वही परिसव है।" ____ ध्यान देने की बात यह है कि जैनधर्म में 18 प्रकार के पापों और 42 प्रकार के आस्रवों का विधान है। 'परिसवे', 'अपरिसवे', 'आसिवने' आदि शब्द बौद्ध न होकर जैन-साहित्य से लिए गए लगते हैं।' निम्न परिभाषायें द्रष्टव्य हैं(1) कायवाङ्मन:कर्म योग: । स आम्रवः। -(तत्त्वार्थसूत्र 6/1-2) (2) आसवदि जेण कम्म, परिणामेणप्पणो स विण्णेयो। भावासवो जिणुत्तो, कम्मासवणं परो होदि।। -(द्रव्यसंग्रह 29) अर्थ :- आत्मा के जिस परिणाम से कर्म आते हैं, वह जिनेन्द्रदेव द्वारा कहा हुआ 'भावासव' है। (3) ज्यों सर-जल-आवत मोरी त्यों आस्रव कर्मन को। दर्वित जीव प्रदेश गहै, जब पुद्गल करमन को।। भावित आम्रवभाव शुभाशुभ, निशदिन चेतन को। पाप-पुण्य के दोनों करता, कारण बंधन को।। -(बारहभावना, कवि मंगतराय) (4) जो जोगनि की चपलाई, ताते वै आस्रव भाई। आस्रव दुःखकार घनेरे, बुधिवंत तिन्हें निरवेरे ।। -(छहढाला 5-7-73, कविवर दौलतराम) उक्त उद्धरणों से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि अशोक ने आम्रवों के सम्बन्ध में जैनों का मत माना है। क्रोध, मान, ईर्ष्या आदि अशोक ने धर्मपालन के लिए कुछ तत्त्वों को त्यागने के लिए कहा। (1) चंडिए (उग्रता), (2) निठूलिए (निष्ठुरता), (3) क्रोधे (क्रोध), (4) माने (मान), (5) इसिया (ईर्ष्या)। इनमें से तीन क्रोध, मान और ईर्ष्या या द्वेष का वर्णन अशोक ने आसिनवगामिनी के रूप में किया है। -- (स्तम्भलेख 3) जैनधर्म में भी क्रोध, मान, माया, लोभ इन चारों कषायों को त्यागने को कहा गया है। प्रत्येक श्रावक के द्वारा नित्यप्रति की जानेवाली 'मेरी भावना' में आचार्य जुगलकिशोर जी कहते हैं 0 124 प्राकृतविद्या-जनवरी-जून '2002 वैशालिक-महावीर-विशेषांक Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.003216
Book TitlePrakrit Vidya 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2001
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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