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एकत्रित होकर राज्य-व्यवस्था तथा सामाजिक और धार्मिक निर्णय करते थे। वयस्क होने पर प्रत्येक लिच्छविकुमार अपने पिता का पद गणराज्य-सत्ता में ग्रहण करता था और तब केवल एक बार 'अभिषेक-पुष्करिणी' के जल से उसका अभिषेक किया जाता था। कौटिल्य अर्थशास्त्र' में लिच्छवियों के संघ को 'राजशब्दोपजीवी' कहा है। 'महावस्तु' संग्रह-ग्रंथ में लिखा है, कि वैशाली में 1 लाख 68 हजार राजा रहते थे। विनयपिटक' के अनुसार वैशाली अत्यन्त समृद्धिशाली और धन से जन से परिपूर्ण थी, उसमें 7777 प्रासाद, 7777 कूटागार और 7777 आराम और 7777 पुष्करिणियां थीं। भिन्न-भिन्न राजकाज के छोटे-बड़े कामों के लिए भिन्न-भिन्न पदाधिकारी नियुक्त थे। जैसे अपराधी का न्याय करने के लिए अनुक्रम से राजगण विनिश्चय महामन्त्र, व्यावहारिक सूत्रधार, अष्टकुलक, सेनापति, उपराजा और राजा इतने अधिकारियों के मण्डलों के पास अपराधी को ले जाया जाता था। महत्त्वपूर्ण विषयों के निर्णय के लिए आठ या नौ व्यक्तियों की व्यवस्था-समिति भी चुनी जाती थीं। लिच्छवियों के संयुक्त राज्य में जिन आठ कुलों के गण थे, उनमें प्रत्येक कुल से एक-एक प्रतिनिधि लेकर आठ जनों की यह व्यवस्था-परिषद् नियुक्त की जाती थी, जो सम्पूर्ण शासन-व्यवस्था करती थी। जैनग्रन्थों में लिखा है कि युद्ध जैसे महत्त्वपूर्ण कार्यों के सम्बन्ध में नौ लिच्छवियों की व्यवस्थापिका-सभा बुलाई जाती थी। लिच्छवियों के नौ या आठ गणों में किन-किन संघों व वंशों का समावेश होता था, यह कहना कठिन है, परन्तु सूत्रकृतांग' के आधार पर राज्य की परिषद् में भोगवंशीय, ऐक्ष्वाकुवंशीय, ज्ञातृ-वंशीय, कौरव-वंशीय, लिच्छवि-वंशीय और उग्रवंशीय क्षत्रियों का उल्लेख है।
इसप्रकार की गणसत्तात्मक-पद्धति, ऐसा मालूम होता है, प्राचीनकाल से प्रचलित थीं। 'ऋग्वेद' में ऐसा आभास मिलता है—जिसप्रकार राजा लोग समिति में एकत्रित होते हैं। इससे अनुमान होता है कि अत्यन्त प्राचीनकाल में ऐसी राज्य-पद्धति संगठित हो गई थी कि राष्ट्र राजवंश के अनेक सभ्यों के एकत्र अनुशासन में होते थे। कौटिल्य के काल में तो लगभग सम्पूर्ण उत्तराखण्ड में ऐसे गणराज्य फैले हए थे। पूर्व की ओर मल्लों के गणराज्यों को यह गिनाता है, मध्य में कुरुओं और पांचालों के उत्तर-पश्चिम के भद्रकों के और दक्षिण-पश्चिम में कुकरों के सम्भवत: इन गणराज्यों को गिराकर ही उसने मौर्य-साम्राज्य की स्थापना की थी। यहाँ पर विचारणीय बात यह है कि बौद्ध-ग्रन्थों में 'लिच्छवि' और 'वज्जी' इन दोनों को एक ही माना है, परन्तु कौटिल्य ने इन दोनों को पृथक्-पृथक् बताया
___ ह्वेनसांग ने भी 'वज्जी देश' को 'वैशाली' से पृथक् माना है। सम्भव है कि सम्पूर्ण संघ वज्जी' कहलाता हो और 'लिच्छवि' इनमें से एक का नाम हो।
- (जैन प्रचारक, दिसम्बर 2001, पृ० 9-12)
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प्राकृतविद्या-जनवरी-जून '2002 वैशालिक-महावीर-विशेषांक
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