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सोते रहेंगे; तब मगधराज उन पर चढ़ाई कर सकेगा।" ___हे आनन्द ! लिच्छवि बारम्बार सम्मेलन करते हैं और इन सम्मेलनों में सभी इकट्ठे होकर एक साथ बैठते हैं, एक साथ उठते हैं और एक साथ काम करते हैं, जो नियम-सम्मत है, उसका विच्छेद नहीं करते। अपने पूर्वजों के प्राचीन धर्म में चले आते हैं, वृद्धों का सत्कार करते हैं, उनकी प्रतिष्ठा करते हैं, उनको पूजते हैं और उनकी आज्ञा मानते हैं। कल-कमारियों और कुल-स्त्रियों का हरण नहीं करते, न उन पर बलात्कार करते हैं। अपने भीतरी और बाहरी चैत्यों को मन-सत्कार से पूजते हैं और पूर्व-परम्परा के अनुसार धार्मिक बलि देने में असावधानी नहीं करते। अर्हन्तों के रक्षण और आश्रयण के लिए वे व्यवस्था रखते हैं। हे आनन्द ! वे जब तक ऐसा करते रहेंगे उनकी उन्नति होगी, अवनति नहीं।" ___ इन उद्धरणों से लिच्छवियों के व्यक्तित्व और चरित्र एवं आचार-विचार पर बहुत कुछ प्रकाश पड़ता है। बुद्ध को और बौद्ध-संघ को उन्होंने कितने ही चैत्य, आराम-शालायें और वन अर्पण किए थे, जिनमें कूटागार-शाला, चापाल-चैत्य, सप्ताम्र-चैत्य, बहुपुत्र-चैत्य, गौतम-चैत्य, कपिनैह-चैत्य, मरकट-हृद-तीर-चैत्य, आम्रपाली का आम्रवन और बालिकाआराम आदि प्रमुख हैं । बुद्ध वहाँ निरन्तर आते-जाते रहते थे। यद्यपि इस बात का कोई स्पष्ट उल्लेख हमें नहीं मिलता कि बुद्ध और महावीर से प्रथम अपने चैत्यों में लिच्छवियों का यह गण विदेहराज जनक से सम्बद्ध था, इसलिए इस राज्य में यज्ञयोग और वैदिक उपासना एवं उपनिषदों में प्रतिपादित ब्रह्मोपासना भी प्रचलित थी। महावीर और बुद्ध के प्रभाव से बहुत जैनोपासक और बौद्धोपासक गृहस्थ और भिक्षु हो गए थे। वज्जी-राजाओं के कुल में अंज-नवनीय, वज्जीपुत्त, सस्भूत, महालि, अभय, समन्दक, उग्र, साल्ह, नन्दक, भद्रिय अदि लिच्छवि नागरिक और जेत्ता, चासिट्टि आदि महिलाओं का उल्लेख है।
आगे चलकर यद्यपि लिच्छवियों का गणराज्य नष्ट हो चुका था; परन्तु उनके कुल की प्रतिष्ठा एक हजार वर्ष तक कायम रही। ईस्वी सन् 4 में समुद्रगुप्त मौर्य ने अपने को बड़े गर्व से 'लिच्छवि-दौहित्र' कहा था। परन्तु यह बात विचारणीय है कि महावीर का जन्म वैशाली का कोई खास-वर्णन जैनग्रन्थों में नहीं दिखाई पड़ता। उत्तरकालीन मसीह की पाँचवीं शताब्दी में संकलित उपासकदशासूत्र' ग्रन्थ में वाणिज्य-ग्राम और वैशाली का राजा 'अजातशत्रु' कहा है, परन्तु 'सूर्यप्रज्ञप्ति ग्रन्थ' में उसे विदेह की राजधानी 'मिथिला' का राजा बताया गया है। गणराज्य-पद्धति
लिच्छवियों के राज्य में गणसत्ता-पद्धति से राजव्यवस्था चलती थी, और इस राज्य में वंश-परम्परा से चला आता और कोई राजा न था। सब राजसत्ता नागरिकों के 'गण' अथवा 'सघ' राजसत्ता नागरिकों के 'गण' अथवा 'संघ' के हाथ में थी, परन्तु इस गण का प्रत्येक सभ्य अपने को 'राजा' कहता था। ये सब 'संथागार' नामक सार्वजनिक राजभवन में
प्राकृतविद्या-जनवरी-जून '2002 वैशालिक-महावीर-विशेषांक
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