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लोकतान्त्रिक दृष्टि और भगवान् महावीर
-प्रभात कुमार दास वर्तमान में भारतवर्ष में लोकतान्त्रिक प्रणाली लागू है और हम सभी इसी लोकतन्त्र के वातावरण में जीवनयापन कर रहे हैं। लोकतन्त्र' की परिभाषा यूनानी दार्शनिक बलीयान ने निम्नानुसार दी है- “जो जनता का हो, जनता के लिये हो एवं जनता के द्वारा हो।” इसीलिये इसका नामान्तर जनतन्त्र' भी है। यही लोकतन्त्र या जनतन्त्र जब सुविचारित रीति से 'बहुजन-हिताय, बहुजन-सुखाय' की कामना के साथ संवैधानिक नियमों की मर्यादाओं में आबद्ध हो जाता है, तो इसे ही 'गणतन्त्र' की संज्ञा प्राप्त होती है। इसीलिये जब 15 अगस्त सन् 1947 में भारत को स्वतन्त्रता मिली, तो वह जनतन्त्र के रूप में था, तथा 26 जनवरी 1950 को जब इसका अपना संविधान बनकर लागू हुआ, तब भारतवर्ष 'गणतन्त्र' कहलाया।
किन्तु गणतन्त्र की प्रणाली का प्रचलन कोई अभी 20वीं शताब्दी की देन नहीं है। इतिहास साक्षी है कि आज से हजारों वर्ष पूर्व भी इस देश में गणतान्त्रिक प्रणाली का आदर्शरूप लोकजीवन में प्रचलित था। सर्वप्रथम हमें वैशाली गणतन्त्र' का उल्लेख मिलता है। संभवत: इसीलिये वैशाली को राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने 'जनतन्त्र का प्रतिपालक' एवं 'गणतन्त्र का आदिविधाता' या प्रवर्तक कहा है
“वैशाली ‘जन' का प्रतिपालक 'गण' का आदिविधाता। जिसे ढूँढ़ता लोक आज उस प्रजातन्त्र की माता ।। रुको एक क्षण पथिक यहाँ मिट्टी को शीश नवाओ। राजसिद्धियों की समाधि पर फूल चढ़ाते जाओ।।"
-(होम एज टू वैशाली) इसके अध्यक्ष लिच्छवी-संघनायक महाराजा चेटक थे। इन्हीं महाराजा चेटक की ज्येष्ठ पुत्री का नाम 'प्रियकारिणी त्रिशला' था, जिनका मंगल-परिणय वैशाली गणतन्त्र के सदस्य एवं क्षत्रिय कुण्डग्राम' के अधिपति 'महाराजा सिद्धार्थ' के साथ हुआ था। इन्हीं महाराज सिद्धार्थ एवं महारानी प्रियकारिणी त्रिशला के आँगन में 'अहिंसा के अग्रदूत' जैनधर्म के चौबीसवें तीर्थकर भगवान् महावीर स्वामी का जन्म हुआ था। इसप्रकार
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प्राकृतविद्या जनवरी-जून 2001 (संयुक्तांक) +महावीर-चन्दना-विशेषांक
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