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________________ करता है। ____ भगवान् महावीर आत्मा के स्वावलम्बन से स्वतंत्रता का उद्घोष कर सर्वोदयी तीर्थ की स्थापना करते हैं। जगत् के जीव अपने को जान-पहिचान एवं रमणता द्वारा संसार-मुक्त हों –यही भावना है। संदर्भग्रंथ-सूची 1. तिलोयपण्णत्ती, भाग 2, चतुर्थ महाधिकार, गाथा 517। 2. वही, गाथा 518। 3. वही, गाथा 521 1 4. वही, गाथा 531। 5. वही, गाथा 584 1 6. वहीं, गाथा 5561 7. वही, गाथा 5571 8. वही, गाथा 583 1 9. वही, गाथा 591 । 10. वही, गाथा 594 1 11. वही, गाथा 5961 12. वही, गाथा 612 1 13. वही, गाथा 675-6771 14. वही, गाथा 5851 15. वही, गाथा 709 । 16. वही, गाथा 7141 17. वही, गाथा 715-717। 18. वही, गाथा 711। 19. वही, गाथा 7181 20. वही, गाथा 943-9481 21. वही, गाथा 9691 22. वही, गाथा 972-9751 23. वही, गाथा 1171-11721 24. वही, गाथा 11871 25. वही, गाथा 11911 26. वही, गाथा 1193-1194 1 27. वही, गाथा 1250-12191 28. वही, गाथा 1240-1242 1 29. वही, गाथा 1248। 30. वही, गाथा 12281 31. वही, गाथा 1260। 32. वही, गाथा 1285। 33. समयसार-आचार्य कुन्दकुन्द, गाथा 2 टीका। 34. तिलोयपण्णत्ती, भाग 3, नवम महाधिकार (सिद्धलोक प्रज्ञप्ति), गाथा 26 (एवं पंचास्तिकाय संग्रह, गाथा 158 एवं 154)। 35. वही (तिलोयपण्णत्ति), गाथा 27। 36. वही, गाथा 30, 36, 291 37. वही, गाथा 38-391 38. वही, गाथा 55-471 39. वही, गाथा 28। 40. वही, गाथा 60। 41. वही, गाथा 63 1 42. वही, गाथा 61-62 | 43. वही, गाथा 67-661 44. वही, गाथा 51-52-54 1 45. वही, गाथा 22-64 । 46. वही. गाथा 251 47. वही, गाथा 45-43 1 48. वही, गाथा 41। 49. वही, गाथा 57,56, 58। महावीर के प्रति विश्रुत विद्वानों के विचार __ भारत में महावीर ने मुक्ति का संदेश दिया और बताया कि धर्म एक वास्तविकता है, वह मात्र परम्परा नहीं है और मुक्ति आत्मसाधना से, धर्माचरण से प्राप्त होती है. बाह्याडम्बरों अथवा कर्मकाण्डों में लिप्त होने से नहीं। धर्म कभी भी आदमी-आदमी में भेद नहीं करता। महावीर की यह विचारधारा आश्चर्यजनक रूप से व्यापक रूप से प्रसारित हो गई और जातिभेद की दीवारों को तोड़ उसने सारे देश को जीत लिया। -रवीन्द्रनाथ टैगोर भगवान् महावीर पुन: जैनधर्म के सिद्धांत को प्रकाश में लाये। भारत में यह धर्म बौद्धधर्म से पहले मौजूद था। प्राचीनकाल में असंख्य पशुओं की बलि दे दी जाती थी। इस बलि-प्रथा को समाप्त कराने का श्रेय जैनधर्म को है। -बाल गंगाधर तिलक ** प्राकृतविद्या-जनवरी-जून'2001 (संयुक्तांक) + महावीर-चन्दना-विशेषांक 00 81 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003215
Book TitlePrakrit Vidya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2001
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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