________________
था विधि का कैसा अमिट लेख? हर सुख से वंचित थी चन्दन। थी राजपुत्री और बनी दासी, कैसी करुणा कैसा क्रन्दन? पर धन्य-धन्य श्री वीर प्रभ. जिनका शुभ ध्यान लगाने से । खुल जाती अन्तर की बेड़ी, हर बन्धन जिनको भाने से।।
और धन्य-धन्य चन्दनबाला, जो कारागृह में रहते भी। जपती थी प्रभु का नाम अटल, सारे कष्टों को सहते भी।।
चन्दनबाला की घर-घर में, कहनी फिर से आज कथा। गर उस बाला को भुला दिया, तो होगी चारों ओर व्यथा ।।
हैं धन्य हमारे मुनिवर श्री, विद्या-नन्दन मुनि विद्यानन्द । जो अमृत बरसाते नित ही, अरु बिखराते चहुँओर अनंद ।।
यह शुभ अध्याय शुरू इनसे, अब हो इसकी हर ओर कथा। श्री वीर प्रभु की जय-जय हो, मिट जाये सारी पीड़ा-व्यथा।। **
हीनता के कारण बालसखित्वमकारणहास्यं, स्त्रीषु विवादमसज्जनसेवा।
गर्दभयानमसंस्कृतवाणी षट्स् नरो लघुतामुपयाति ।। अर्थ :-- जो बच्चों (अज्ञानीजनों) की मित्रता करता है, बिना प्रयोजन के ही हँसता है, स्त्रियों से विवाद (बहस) करता है, दुर्जनों की सेवा करता है, गधे की सवारी करता है तथा संस्कारविहीन (असभ्य) वचन बोलता है - इन छह कार्यों को करने से व्यक्ति क्षुद्रता/हीनता को प्राप्त होता है।
**
076
प्राकृतविद्या जनवरी-जून'2001 (संयुक्तांक) + महावीर-चन्दना-विशेषांक
www.jainelibrary.org
Jain Education International
For Private & Personal Use Only