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चेटकाख्य: पतिस्तस्य सुभद्रा महिषी मता।।" – (विमलपुराण) अर्थ :- नदियों से घिर हुए देश में 'विशाला' नामकी नगरी थी, उसमें चेटक' नामका राजा था तथा उसकी पटरानी का नाम 'सुभद्रा' था।
सिद्धार्थ भरतक्षेत्र में स्थित विदेह प्रदेश के अन्तर्गत 'क्षत्रिय कुण्डपुर' नामक नगर में राज्य करते थे। उनकी सहधर्मिणी प्रियकारिणी त्रिशला के गर्भ में वर्द्धमान आये।
इस 'वैशाली' में उत्पन्न होने के कारण भगवान् महावीर का एक नाम वैशालिक' भी पड़ गया था।
वैशाली' की महत्ता और भगवान महावीर के सम्बन्ध पूर्व राष्ट्रपति डॉ० राजेन्द्र प्रसाद के वचन मननीय हैं
__ “वैशाली का इतिहास केवल राजनीतिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण नहीं है। यह चौबीसवें तीर्थंकर वर्द्धमान महावीर की जन्मस्थली भी है।" ___“वैशाली के इतिहास और वैधानिक कार्य-प्रणाली से हम बहुत सीख सकते हैं, पर हमारी जानकारी इतनी कम है कि उस ओर ध्यान तक नहीं जाता।"
-डॉ० राजेन्द्रप्रसाद (भूतपूर्व राष्ट्रपति) भारत के पुरातत्त्व विभाग के द्वारा वैशाली (आधुनिक बसाढ़ – जिला मुजफ्फरपुर) की गई खुदाई में एक मोहर प्राप्त हुई है, जिसमें 'वैशाली' के साथ ‘कुण्ड' शब्द भी जुड़ा है- 'वेसाली' नाम कुंडे कुमारामात्याधिकरणस्स" – (होम टू वैशाली, पृष्ठ 249)
वैशाली नगर अतीव सुन्दर और सुव्यवस्थित था। बौद्ध-ग्रंथों में इसका वर्णन इसप्रकार मिलता है :— “वेसालिनगरं गावुत गावुतंतरे तीहि पकारेहि परिक्खित्तं तीसु ठानेसु गोपुरट्टालकोट्ठक-युत्तं ।” - (जातकट्ठकथा पण्णजातक, पृ० 366)
वैशाली नगर में दो-दो मील पर (गावुत-गव्यूति) एक-एक परकोटा बना था और उसमें तीन स्थानों पर अट्टालिकाओं-सहित प्रवेशद्वार बने हुए थे। ___ वैशाली नगर का वर्णन प्राचीन ग्रंथों में जैसा प्राप्त होता है, उसके अनुसार इस नगर के तीन भाग थे। पहिले भाग में सोने के गुम्बदवाले 7000 प्रासाद थे, द्वितीय भाग में चाँदी के गुम्बदवाले 14000 भवन थे तथा तृतीय भाग में ताँबे के गुम्बदवाले 21000 मकान थे। इनमें अपनी-अपनी स्थिति (स्तर) के अनुरूप लोग रहते थे। इन 42000 भवनों वाले वैशाली नगर की जनसंख्या 1,68,000 थी। इसमें 7707 व्यक्ति संसद-सदस्य थे। संसद की आठ प्रकार की परिषदें थीं—
अट्ट खो इमा आनंद ! परिसा.......... । अर्थ:- हे आनन्द ! परिषद् आठ प्रकार की होती है :
1. क्षत्रिय-परिषद्, 2. श्रमण-परिषद्, 3. ब्राह्मण-परिषद्, 4. गृहपति-परिषद्, 5. चातुर्महाराजिक-परिषद्, 6. बायस्त्रिंश-परिषद्, 7. मार-परिषद्, 8. ब्रह्म-परिषद् ।
प्राकृतविद्या-जनवरी-जून'2001 (संयुक्तांक) + महावीर-चन्दना-विशेषांक 0067
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