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में ईसा से लगभग 700-800 वर्ष पूर्व जनतन्त्र-प्रणाली को चलाया (जन्म दिया) था।"
-- (वही) ऐतिहासिक महापुरुषों के रूप में निर्विवादरूप से मान्य तेईसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ के काल में भी वैशाली' नगरी का अस्तित्व उल्लिखित है..
“वइसालीए पुरीए सिरिपासजिणेस-सासणणाहो। हेहयकुलसंभूदो चेडगणामा णिवो आसि ।।"
-(उपदेशमाला, श्लोक 92) अर्थ :- शासननायक पार्श्वनाथ जिनेन्द्र के प्रचारक्षेत्र की केन्द्रभूत 'वैशाली' नामक नगरी में क्षत्रियकुलोत्पन्न चेटक' नामक राजा था। इसी तथ्य को आचार्य गुणभद्र ने निम्नानुसार व्यक्त किया है
“सिन्ध्वाट्यविषये भूभृद् वैशालीनगरेऽभवत् । चेटकाख्योऽतिविख्यातो विनीत: परमार्हतः।।"
-(आचार्य गुणभद्र, उत्तरपुराण 75/3) अर्थ :- सिन्ध्वाढ्य (नदियों से घिरे हुये क्षेत्र) प्रदेश की राजधानी वैशाली नगर में महारानी श्री सुभद्रा पट्टरानी सहित गणतंत्र के अध्यक्ष श्रीमान् चेटक नामक महाराजा अतिशय सुप्रसिद्ध, विनीत एवं राजभक्त ही नहीं, अपित जिनेन्द्र का भी परमभक्त राजा रहता था। ___ वैशाली के बाहर कुण्डग्राम नामक नगर था। इसी में ज्ञातृकुल-प्रमुख राजा सिद्धार्थ के घर वर्द्धमान महावीर का जन्म हुआ था। आचार्य पूज्यपाद देवनंदि इस विषय में लिखते है:- 'सिद्धार्थनृपतितनयो भारतवास्ये विदेहकुण्डपुरे।'
-(आचार्य पूज्यपाद, निर्वाणभक्ति, पृ० 4) "इतश्च वसूधावध्वा मौलिमाणिक्य-सन्निभा। वैशालीति श्रीविशालानगरी स्वर्गगरीयसी।। आखण्डल इवाखण्ड-शासन: पृथिवीपतिः । चेटीकृतारिभूपालस्तत्र चेटक इत्यभूत् ।।"
__ -(त्रिषष्टिशलाकापुरुष-चरित्र 10/184-185) अर्थ :- वैशाली नगरी पृथ्वीरूपी वधु के मुकुट में लगे हुए माणिक्य के जैसी श्री-सम्पन्न थी। स्वर्ग से भी अधिक उसकी महत्ता थी। वहाँ का राजा चेटक था। उसकी आज्ञा इन्द्र की आज्ञा के समान प्रजानन मानते थे और शत्रुजन जिसके प्रताप से चेटी अर्थात् दास के जैसे बने हुए अभिभूत रहते थे।
इसी तथ्य की पुष्टि इस पुराणवचन से भी होती है_ “सधुक्ते सिन्धवाढ्यदेशे वै विशाला नगरी मता।
9066 प्राकतविद्या जनवरी-जन'2001 (संयक्तांक) + महावीर-चन्दना-विशेषांक
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