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________________ 3. वज्जी अप्रज्ञप्त को प्रज्ञप्त नहीं करते और प्रज्ञप्त का उच्छेद नहीं करते हैं। 4. वज्जियों के जो वयोवृद्ध हैं, उनका वे सत्कार करते हैं, गुरुकार करते हैं, मानते हैं, ___पूजते हैं, उनकी सुनने योग्य बात मानते हैं। 5. जो कुल-स्त्रियाँ हैं, कुल-कुमारियाँ हैं, उन्हें वे जबरदस्ती नहीं रोकते हैं, न छीनते, न बसाते हैं। 6. वज्जियों के भीतर-बाहर जो चैत्य हैं, वे उनका सत्कार करते हैं, उनके लिये किये दान का, पहले की गई धर्मानुसार पूजा का लोप नहीं करते। 7. वज्जी लोग अर्हतों की अच्छी तरह धर्मानुसार रक्षा करते हैं, ताकि भविष्य में अर्हत राज्य में आयें और सुखपूर्वक विहार करें। 'वज्जि गणतन्त्र' की राजधानी वैशाली' नगरी में विद्यमान गणतान्त्रिक प्रणाली के वातावरण में 'क्षत्रियकुण्डग्राम' में जैन-परम्परा के चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर का जन्म आज से 2600वर्ष पूर्व हुआ था। यहाँ के क्षत्रिय इक्ष्वाकुवंशीय थे। इन्हीं के पूर्वजों ने इस 'वैशाली' नगरी का निर्माण अतिप्राचीन काल में कराया था। बाल्मीकि रामायण' के अनुसार राजा 'इक्ष्वाकु' के पुत्र विशाल' ने इस नगरी का निर्माण कराया था। वहाँ इसका उल्लेख 'विशाला' या 'उत्तमपुरी' के रूप में प्राप्त होता है "इक्ष्वाकोस्तु नरव्याघ्र पुत्र: परमधार्मिकः । अलम्बुषायामुत्पन्नो विशाल इति विश्रुतः ।। ... तेन चासीदिहस्थाने विशालेति पुरी कृता।।" –(बाल्मीकि रामायण, बालकाण्ड, सर्ग 47, श्लोक 11-12) अर्थ :- ‘इक्ष्वाकु' नामक राजा के परमप्रतापी एवं परमधार्मिक पुत्र उत्पन्न हुआ। 'अलम्बुषा' नामक रानी की कुक्षि उत्पन्न यह पुत्र विशाल' नाम से विख्यात हुआ। उसी के द्वारा इस स्थान पर 'विशाला' नाम की पुरी (नगरी) का निर्माण कराया गया। भागवतकार ने भी इसी तथ्य की पुष्टि करते हुए लिखा है"विशालो वंशकृद् राजा वैशाली निर्ममे पुरीम् ।” – (भागवत, 9/2/33) उक्त विवरण के अनुसार यह नगरी श्रीराम से भी प्राचीन है, जिसे आज के तथाकथित इतिहासवेत्ता चौथी-पाँचवीं शती ईसापूर्व में निर्मित बताते हैं। पाँच वर्षों तक निरन्तर वैशाली के बारे में अध्ययन-अनुसंधान करनेवाले आई०सी०एस० अधिकारी श्री जगदीश चन्द्र माथुर लिखते हैं__"बाल्मीकि रामायण में ही उल्लेख मिलता है कि ऋषि विश्वामित्र के साथ जनकपुरी (मिथिला) जाते समय राम और लक्ष्मण ने दूर से वैशाली के उन्नत शिखरों और भव्य भवनों को देखा था।" --(वैशाली दिग्दर्शन, होम एज टू वैशाली, पृष्ठ 290) उन्होंने यह भी लिखा है कि “लिच्छिवि एक तेजस्वी क्षत्रिय जाति थी, जिसने वैशाली __प्राकतविद्या-जनवरी-जन'2001 (संयुक्तांक) + महावीर-चन्दना-विशेषांक 00 65 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003215
Book TitlePrakrit Vidya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2001
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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