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________________ 'वैशाली' और 'राजगृह' -डॉ० सुदीप जैन गणतन्त्र की जन्मस्थली वैशाली' और भगवान महावीर ___राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर' की इस कालजयी कविता में एक चिरन्तन ऐतिहासिक सत्य का उद्घाटन हुआ है कि इस देश में गणतन्त्र की प्रणाली का जन्म वैशाली नगरी में हुआ था "वैशाली 'जन' का प्रतिपालक, 'गण' का आदि-विधाता। जिसे ढूँढ़ता देश आज उस, प्रजातन्त्र की माता।।" इससे स्पष्ट है कि कविवर दिनकर जी की दृष्टि में वैशाली प्रजातन्त्र की माता' थी, और उसी की कोख में गणतन्त्र का जन्म इस भारतवर्ष में हुआ था । वस्तुत: इस गणतन्त्र का नाम 'वज्जिसंघ' या 'वज्जि गणतन्त्र' था, और इसकी राजधानी वैशाली नगरी थी। वैशाली की प्रधानता के कारण ही इसे वैशाली गणतन्त्र' भी कहा जाने लगा। वज्जिरट्ठ' या वज्जिगणतन्त्र' के अन्तर्गत तत्कालीन बंगप्रदेश, मगधप्रदेश एवं चेरपाद प्रदेश आते थे; जिन्हें आज हम बंग्लादेश, पश्चिमी बंगाल प्रदेश, उत्तरी उड़ीसा, पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार प्रदेश के रूप में जानते हैं। काव्यशिक्षाकार ने वज्जि' शब्द का परिचय 'वृजिनं जिन:' (काव्यशिक्षा, 29) कहकर दिया है। वृ' वर्जने धातु से निष्पन्न इस वज्जि' शब्द का अर्थ है कि जो अंतत: शरीर का भी स्वयं त्याग कर देते थे, ऐसे लोग। इसप्रकार वज्जि' शब्द वृजिन:' का रूपान्तर सिद्ध होता है। 'चेर' या 'चेल' धातु भी गतिसूचक है, इससे इससे चेरपाद' शब्द की वृजिन:' का प्राय: समानार्थक सिद्ध होता है। इन वज्जियों के सात अपरिहार्य नियम थे, जिनका उल्लेख बौद्ध-ग्रंथों में निम्नानुसार प्राप्त होता है- 'वज्जिनं सत्त अपरिहानिया धम्मा।' वे हैं1. वज्जी बार-बार बैठक करते हैं। 2. वज्जी एक होकर बैठक करते हैं, एक होकर उत्थान करते हैं, एक होकर कर्तव्य करते हैं। 40 64 प्राकृतविद्या-जनवरी-जून'2001 (संयुक्तांक) + महावीर-चन्दना-विशेषांक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003215
Book TitlePrakrit Vidya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2001
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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