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________________ सन्दर्भ-सूची 1. (क) “सिन्ध्वाट्यविषये भूभृद् वैशालीनगरेऽभवत्। चेटकाख्योऽतिविख्यातो विनीत: परमार्हतः।।” ----(आचार्य गुणभद्र, उत्तरपुराण 75/3) अर्थ :- सिन्ध्वाढ्य (नदियों से घिरा हुआ प्रदेश) वैशाली राजधानी नगर में महारानी श्री सुभद्रा पट्टरानी सहित महाराजा गणतंत्र का अध्यक्ष श्रीमान् चेटक अतिशय सुप्रसिद्ध, विनीत एवं राजभक्त ही नहीं, अपितु जिनेन्द्रभक्त भी था। (ख) “सिन्धुदेशे विशालाख्यपत्तने चेटको नृपः । श्रीमज्जिनेन्द्रपादाब्जसेवनैकमध्रुवतः ।।" – (आराधनाकथाकोष 4, पृ0 228) अर्थ :- सिन्धु (नदियों से घिरा हुआ) देश के वैशाली नगर में चेटक नाम का राजा था, जो निश्चल भाव से श्री जिनेन्द्र के चरणकमलों का अनन्य सेवक था। 2. "पडिगहमुच्चट्ठाणं पादोदयमच्चणं पणामं च। मण-वयण-कायसुद्धी एसणसुद्धि णवविहं पुण्णं ।।” अर्थात् 1. पड़गाहना, 2. उच्चस्थान देना, 3. पाद-प्रक्षालन करना, 4. पूजन, 5. प्रणाम, 6. मनशुद्धि, 7. वचनशुद्धि, 8. कायशुद्धि, 9. एषण/आहारशुद्धि –ये नवपुण्य कहलाते धर्म का मंगलमय स्वरूप "धम्मो मंगलमुक्किट्ठ, अहिंसा संजमो तवो। देवा वि तं पणमंति, जस्स धम्मे सया मणो।।" -(क्रियाकलाप, प्रतिक्रमणसूत्र, पृष्ठ 260) भावार्थ :- धर्म परममंगल एवं उत्कृष्ट है, कौन-सा धर्म? अहिंसा परमधर्म ! संयम धर्म ! तप धर्म ! (इच्छा-निरोधस्तपः) जिस भव्यात्मा का मन उक्त धर्म में सदा तल्लीन रहता है, उसे देवता (उत्कृष्ट मनुष्य) भी नमस्कार करते हैं। ___ जैन अहिंसा के लिये 'समता धर्म' को आवश्यक समझते हैं, 'समता' वह धर्म है जिसका कोई सीमा बंध नहीं है। अत: अहिंसावाद धर्म का प्रवेशद्वार है। ** बुद-उवाच ___ महात्मा बुद्ध ने कहा था- "भिक्षुओ ! मैंने एक प्राचीन राह देखी है, एक ऐसा प्राचीन मार्ग जो कि प्राचीन काल के अरिहन्तों द्वारा आचरण किया गया था। मैं उसी पर चला और चलते हुए मुझे कई तत्त्वों का रहस्य मिला। भिक्षुओ ! प्राचीनकाल में जो भी अर्हन्त तथा बुद्ध हुए थे, उनके भी ऐसे ही दो मुख्य अनुयायी थे, जैसे मेरे अनुयायी | सारिपुत्र और मोग्गलायन हैं।" ** प्राकृतविद्या जनवरी-जून'2001 (संयुक्तांक) + महावीर-चन्दना-विशेषांक 00 63 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003215
Book TitlePrakrit Vidya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2001
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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