SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 109
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवान् महावीर और अहिंसा-दर्शन ___ -डॉ० सुदीप जैन सम्पूर्ण जैन-परम्परा आज ‘अहिंसा के उत्कर्ष से जानी-पहिचानी जाती है। “अहिंसा परमो धर्म:" का आदर्श वाक्य जैन-संस्कृति की मौलिक पहिचान है। जैनाचार्य अमृतचन्द्र सूरि ने 'हिंसा' को प्रमुख पाप और 'अहिंसा' को प्रधान धर्म बताया है तथा कहा है कि पापों मं जो झूठ, चोरी आदि की गणना करायी गयी है, वह तो मात्र शिष्यों को समझाने के लिए है— “अनृतवचनादि-केवलमुदाहृतं शिष्यबोधाय।” — (पुरुषार्थसिद्ध्युपाय) जैन-ग्रंथों में 'अहिंसा' की महिमा अनेकत्र गायी गयी है... “अहिंसा सर्वेषु व्रतेषु प्रधानम् ।" ---(आ० अकलंकदेव, राजवार्तिक, 7/1/6) अर्थ :- सभी व्रतों में अहिंसा की ही प्रधानता है। “अहिंसैव जगन्माताऽहिंसैवानन्द-पद्धति:।" – (आ० शुभचन्द्र, ज्ञानार्णव, 8/32) अर्थ :- अहिंसा ही जगत की माता है और अहिंसा ही आनन्द की पद्धति या आनन्दानुभूति की प्रक्रिया है। इसीकारण अहिंसा धर्म की श्रद्धा करने की वे प्रेरणा देते हैं.... “धम्मु अहिंसउ सद्दहिइ।” -- (कवि पुष्पदन्त, महापुराण) अर्थ :- (हे भव्य जीवों ! तुम) अहिंसा धर्म की श्रद्धा करो। जैन-परम्परा में अहिंसा की प्रधानता की पुष्टि करते हुए राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी लिखते हैं"भूतदया जैनों का मुख्यतत्त्व है, मैं सब अहिंसावादी लोगों को जैन ही समझता हूँ।" __-(द्र० दैनिक नवाकाल, 27 नवम्बर 1932 ई०) अहिंसा की प्रधानता का जैसा प्रभावी प्ररूपण भगवान् महावीर के द्वारा किया गया, उसका उनके समकालीन दार्शनिकों और विचारकों पर गहरा प्रभाव परिलक्षित होता है। एक क्षपणक लिखते हैं "महाभाग ! अहिंसा पलमो धम्मोऽत्थि।" - (प्रबोधचन्द्रोदय नाटक, 3/15) अर्थ :...- हे महाभाग ! अहिंसा ही परमधर्म है। प्राकृतविद्या जनवरी-जून'2001 (संयुक्तांक) + महावीर-चन्दना-विशेषांक 10 107 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003215
Book TitlePrakrit Vidya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2001
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy