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________________ अपने समय में धर्म के नाम पर होने वाली हिंसा का विरोध किया। महावीर की अहिंसा में विरोधी प्रकृति के जीव भी एक स्थान पर विचरते थे। ___ महावीर ने एकान्तवाद का विरोध किया। उनके अनुसार वस्तु अनेकधर्मरूपा है. उनकी कथनशैली है 'स्याद्वाद' । 'स्याद्वाद' हमें समताभाव और सहिष्णुता देता है। आग्रह से मुक्ति मिलती है। विचारों में विषमता समाप्त होती है। समता ही जीवन है। ___ महावीर ने “बह्वारम्भपरिग्रहत्वं नारकस्यायुष्य:, अल्पारम्भपरिग्रहत्वं मानुषस्य" कहकर परिग्रह को पाप का पुंज बताया। अनावश्यक संग्रह संघर्षों की जड़ है। सामाजिक विषमताओं का कारण परिग्रह है। अतएव त्याग और संयम पर बल दिया। महावीर का कर्मवाद प्राणीमात्र को पूर्ण स्वतंत्रता देता है। प्रत्येक प्राणी अपने सुख-दुःख, जीवन-मरण, उत्थान-पतन, शुभाशुभ कर्मों का कर्ता-भोक्ता स्वयं है। क्रोधादि कषायें आत्म-प्रदेशों के साथ मिलकर आत्मस्वभाव को मलिन कर देती हैं। कर्मबन्धन से मुक्ति के लिये कषायों पर विजय पाना आवश्यक है। 'कषायमुक्ति किल मुक्तिरेव ।” महावीर का जीवनदर्शन पावन मन्दाकिनी सदृश है; जिसमें अवगाहन और स्नान से तन और मन दोनों पवित्र हो जाते हैं। उनका दर्शन अहिंसा, संयम और तप के उत्कृष्ट रूप धर्म को धारण करता है, जिस धर्म को देवता भी प्रणाम करते हैं, वह धर्म उत्कृष्ट मंगलस्वरूप है। ** महावीर के प्रति विश्रुत विद्वानों के विचार संसार के किसी भी धर्म ने अहिंसा की इतनी सूक्ष्म और व्यापक परिभाषा नहीं की है, जितनी जैनधर्म ने की है। उसने इसे विशेष रूप से मन, वचन, काय से आचरण में उतारने पर बल दिया है। अहिंसा का यह उदात्त सिद्धांत जब भी संसार में व्यवहार में आयेगा, तो निश्चय ही जैनधर्म का विशेष योगदान रहेगा और भगवान् महावीर का नाम अहिंसा के अग्रदूत के रूप में लिया जायेगा। यदि किसी ने अहिंसा के सिद्धांत को विकसित किया है. तो वे महावीर हैं। इस पर विचार करें और इसे जीवन में उतारें। ___-महात्मा गाँधी जैनधर्म मानव को ईश्वरत्व की ओर ले जाता है और सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान व सम्यक् आचरण के जरिये पुरुषार्थ से उसे परमात्म-पद प्राप्त करा देता है। __-डॉ० मुहम्मद हाफिज अहिंसा का सिद्धांत सबसे पहले गहन रूप से भलीभांति तीर्थकरों द्वारा प्रतिपादित एवं प्रचारित किया गया। इसमें 24वें तीर्थंकर भगवान् महावीर वर्द्धमान का उल्लेखनीय योगदान है। महात्मा बुद्ध और फिर महात्मा गाँधी ने भी मन, वचन, काय से अहिंसा के सिद्धांत को आचरण में उतारा । --प्रो० तानयुन शान (चीन) ** .00 106 प्राकतविद्या जनवरी-जन'2001 (संयक्तांक) + महावीर-चन्दना-विशेषांक Jain Education international www.jainelibrary.org
SR No.003215
Book TitlePrakrit Vidya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2001
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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