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________________ आचार्य रत्नप्रभरि का जीवन ] । ओसवाल संवत् ८००-८२४ मनाया आये हुए श्रीसंघ को पेहरामणी वगैरह देकर विसर्जन किया कार्य की सफलता से उनके दिल में भी हर्ष का पार नहीं था। पाठकों ! आज कांग्रेसो, कान्फरन्से, मीटिंगे, कमेटिये और सभाए कोई नयी बातें नहीं है पर प्राचीन समय से ही चलती आई थीं उसके पहले धर्म प्रचार के लिये तीर्थङ्करों के समवसरण रचा जाता था वे भी एक प्रकार की समाए ही थी उस जमाने में और आज के जमाने में केवल इतना ही अन्तर है कि पूर्व जमाना में जो कार्य करना चाहते थे सर्व सम्मति से निश्चय कर कार्यकर्त्ता तन मन एवं धन से उस कार्य को करके ही निद्रा लेते थे तब आज प्रस्ताव पास कर रजिस्टरों में बान्ध कर रख दिया जाता है। विशेषता यह है कि काम करना कोई चाहते नहीं है पर एक दूसरे पर व्यर्थ अक्षेप करके मतभेद खड़ा कर देते है जिससे कार्य करना तो दूर रहा पर उल्टी पार्टियों बन जाती है और जनता का भला के स्थान बुरा हो जाता है। खैर आचार्य रत्नप्रभसूरि अपनी वृद्धावस्था के कारण उपकेशपुर के श्रीसंघ की अति आग्रह होने से वहां ही विराजमान रहे नूतनाचार्य यक्षदेवसूरि भी आपकी सेवा में ही थे सूरिजी ने गच्छी का सर्व भार यक्षदेवसूरी के सुपर्द कर आप अन्तिम सलेखना करने में लग गये अन्त में लुणाद्री पहाड़ी पर १६ दिन का अनसन कर समाधि पूर्वक स्वर्ग पधार गये। आचार्य रत्नप्रभसूरी महान प्रभाविक एवं धर्म प्रचारक आचार्य हुए है आप उपकेशगच्छ में षष्टम् आचार्य अर्थात इस नाम के अन्तिमाचार्य हुए है। आपश्री ने अपने २४ वर्ष का दीर्घ शासन में प्रत्येक प्रान्त में विहार कर जैन धर्म का खूब ही प्रचार किया आपने बहुत से मुमुक्षुओं को दीक्षा देकर श्रमण संघ में भी अच्छी वृद्धि की यही कारण है कि अपने प्रत्येक प्रान्त में मुनियों का विहार करवा कर जैन धर्म का प्रचार बढ़ाया था पट्टावलियों वंशावलियों, आदि ग्रंथों में आपके शासन में धर्म कार्यों के कई उल्लेख मिला है। प्राचार्यश्री के शासन में भावुकों की दीक्षाएँ--- १-शंखपुर के श्री श्रीमालगौ० शाह जैता ने दीक्षा ली २-यासिकादुर्ग के आदित्य नागगौ। भारमल ने ३- अरजुनपुर के भाद्रगोत्रीय , भाणा ने ४-नागपुर के कुमटगौत्रीय ___ चूड़ा ने ५-उपकेशपुर के डिडूगौत्रीय सालगने ६ -शाम्बाकतरी के लघुश्रेष्ठिगी. सखला ने ७-फलवृद्धि के चिंचटगी० पोलाक ने ८-कोरंटपुर के श्रेष्टिगौत्री जिनदास ने ९-सत्यपुर आदित्यनाग मांझण ने १०-सांगली के बाप्पनाग० जोरा ने ११-सेननगर के भूरिगोत्रीय० फागु ने १२-गोसलपुर के करणाटगौ० जल्हण ने आचार्य रत्नप्रभसूरि का स्वर्गवास ] ८२७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003212
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages842
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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